आज मदर'स डे....इस दिन उसे कुछ साल पूर्व का मदर'स डे बेसाख्ता याद आ जाता...कितनी ही कोशिशें कीं,पर वो भुला नहीं पाती...
उन दिनों उसके परिवार में एक अजीबो गरीब वाक़या घटा था...एक परिचित ने ना जाने किस जनम का बदला निकालना चाहा था.... उसपे बेहद घटिया क़िस्म के आरोप लगा,वो मेल्स उसके पती तथा बेटी को भेजे थे..बेटी ब्याहता थी....अपने मायके आयी हुई थी..परिचित ने केवल मेल भेज के तसल्ली नही की थी. नेट पर भी मनगढ़ंत इल्ज़ामात की बरसात कर दी थी.
कैसी विडम्बना थी की,उसके अपने परिवार को,जिसने उसे बरसों जाना परखा था,एक 'अ'परिचित व्यक्ती बिखरा रहा था! ऐसी घड़ी में उसे संबल देनेके बदले उसे शक के कटघरे में घेर लिया था....उसे खुद नही पता की,वो दिन रात कैसे काट रही थी...अपने हाथों को फानूस बना,उसने परिवार की ज्योत से टकराई हर आँधी से सामना किया था...लेकिन परिवार को आँच न लगने दी थी.
उस दिन उठी तो उसे मदर'स डे होने का एहसास हुआ. अपनी लाडली को शुभ कामनाएँ देने वो उसके कमरे में गयी....उसने बिटिया को गले लगाना चाहा ....पर ये क्या..? बिटिया ने एक झटके से उसे धकेल दिया और कहा, "माँ ! तुमने मुझे पैदा होते ही मार क्यों न दिया? मेरा गला क्यों घोंट न दिया? मत छुओ मुझे...!."
उसपे मानो बिजली गिरी!
उसे अनायास अपनी दादी और दादा की बातें याद आ गयीं! वो बताया करते थे,की,जब उनकी इस पहली पोती का जन्म हुआ तो परिवार में कितनी खुशियाँ मनी थीं! उन सभी को लडकी की चाह थी और वो पूरी हो गयी थी! परिवार ने क्या,पूरे गाँव ने खुशियाँ मनाईं थीं!
उस लाडली पोती का यथावकाश प्रेम विवाह हुआ....और उसे भी पहली औलाद एक बिटिया ही हुई...लेकिन उसकी बिटिया का कोई स्वागत नही हुआ...कोई खुशियाँ नही मनी...बल्कि उसे एक बोझ ही माना गया...वो अपनी बिटिया के लिए ढाल और कवच बन गयी...उसके परवरिश की पूरी ज़िम्मेदारी उसी पे थी...अपनी बिटिया के लिए एक पैसे की वस्तू भी ख़रीदनी हो तो उसपे ऐतराज़ किया जाता...कैसे कैसे दिन काटे उसने....किस तरह पढ़ाया लिखाया...वही जाने...
उसकी बिटिया जब पैदा हुई तो वो उसे रेशम की डोर से भी खरोच पहुँचे,बर्दाश्त नही कर पाती.....उसका वो गला घोंट देती??उस के दादा दादी गर जान जाएँ की उनकी सब से अधिक लाडली पोती को उसी की बेटी ने आज के दिन कैसे अलफ़ाज़ सुना दिए थे?
जिस दिन उसकी बेटी जन्मी थी,एक माँ जन्मी थी...बल्कि उसकी बिटिया का जनम मदर'स डे के दिन ही हुआ था! आज जब दुनिया माँ को सलाम कर रही थी,उसकी बेटी ने उसे बेमौत मार डाला था! हाँ! उस एक अनजान दुश्मन के बदौलत एक बेटी ने अपनी माँ की मानो ह्त्या कर दी थी....!
उस के बाद कई मदर'स डे आये गए....लेकिन वो अपनी बेटी के कठोर अलफ़ाज़ भूल नही पायी...
'वो' और कोई नही,मैही हूँ....नही पता की,इतनी व्यक्तिगत बात ब्लॉग पे लिखना सही है या नही....लेकिन आज न जाने क्यों,मुझ से ये बात साझा किये बिना रहा नही गया....कोई बताएगा मुझे,की,मुझ से ऐसी क्या गलती हुई होगी,बिटिया की परवरिश में, जो मुझे ये अलफ़ाज़ सुनने पड़े?
लग रहा है की ,हालिया घटी कुछ घटनाओं का ब्यौरा देना भी आवश्यक है ....इसलिए :
क्रमश:
कैसी विडम्बना थी की,उसके अपने परिवार को,जिसने उसे बरसों जाना परखा था,एक 'अ'परिचित व्यक्ती बिखरा रहा था! ऐसी घड़ी में उसे संबल देनेके बदले उसे शक के कटघरे में घेर लिया था....उसे खुद नही पता की,वो दिन रात कैसे काट रही थी...अपने हाथों को फानूस बना,उसने परिवार की ज्योत से टकराई हर आँधी से सामना किया था...लेकिन परिवार को आँच न लगने दी थी.
उस दिन उठी तो उसे मदर'स डे होने का एहसास हुआ. अपनी लाडली को शुभ कामनाएँ देने वो उसके कमरे में गयी....उसने बिटिया को गले लगाना चाहा ....पर ये क्या..? बिटिया ने एक झटके से उसे धकेल दिया और कहा, "माँ ! तुमने मुझे पैदा होते ही मार क्यों न दिया? मेरा गला क्यों घोंट न दिया? मत छुओ मुझे...!."
उसपे मानो बिजली गिरी!
उसे अनायास अपनी दादी और दादा की बातें याद आ गयीं! वो बताया करते थे,की,जब उनकी इस पहली पोती का जन्म हुआ तो परिवार में कितनी खुशियाँ मनी थीं! उन सभी को लडकी की चाह थी और वो पूरी हो गयी थी! परिवार ने क्या,पूरे गाँव ने खुशियाँ मनाईं थीं!
उस लाडली पोती का यथावकाश प्रेम विवाह हुआ....और उसे भी पहली औलाद एक बिटिया ही हुई...लेकिन उसकी बिटिया का कोई स्वागत नही हुआ...कोई खुशियाँ नही मनी...बल्कि उसे एक बोझ ही माना गया...वो अपनी बिटिया के लिए ढाल और कवच बन गयी...उसके परवरिश की पूरी ज़िम्मेदारी उसी पे थी...अपनी बिटिया के लिए एक पैसे की वस्तू भी ख़रीदनी हो तो उसपे ऐतराज़ किया जाता...कैसे कैसे दिन काटे उसने....किस तरह पढ़ाया लिखाया...वही जाने...
उसकी बिटिया जब पैदा हुई तो वो उसे रेशम की डोर से भी खरोच पहुँचे,बर्दाश्त नही कर पाती.....उसका वो गला घोंट देती??उस के दादा दादी गर जान जाएँ की उनकी सब से अधिक लाडली पोती को उसी की बेटी ने आज के दिन कैसे अलफ़ाज़ सुना दिए थे?
जिस दिन उसकी बेटी जन्मी थी,एक माँ जन्मी थी...बल्कि उसकी बिटिया का जनम मदर'स डे के दिन ही हुआ था! आज जब दुनिया माँ को सलाम कर रही थी,उसकी बेटी ने उसे बेमौत मार डाला था! हाँ! उस एक अनजान दुश्मन के बदौलत एक बेटी ने अपनी माँ की मानो ह्त्या कर दी थी....!
उस के बाद कई मदर'स डे आये गए....लेकिन वो अपनी बेटी के कठोर अलफ़ाज़ भूल नही पायी...
'वो' और कोई नही,मैही हूँ....नही पता की,इतनी व्यक्तिगत बात ब्लॉग पे लिखना सही है या नही....लेकिन आज न जाने क्यों,मुझ से ये बात साझा किये बिना रहा नही गया....कोई बताएगा मुझे,की,मुझ से ऐसी क्या गलती हुई होगी,बिटिया की परवरिश में, जो मुझे ये अलफ़ाज़ सुनने पड़े?
लग रहा है की ,हालिया घटी कुछ घटनाओं का ब्यौरा देना भी आवश्यक है ....इसलिए :
क्रमश:
36 टिप्पणियां:
आपकी कोई गलती नही ये तो उस बेटी का दुर्भाग्य है…………मै समझ गयी हूँ क्या हुआ था …………मगर आप से यही कहूंगी कि बच्चे तो बच्चे ही होते हैं और माँ सिर्फ़ माँ ………हर हाल मे बच्चे को माफ़ कर देती है और आपने भी कर दिया होगा ………अब इस बात को अपने दिल पर मत लगाइये………जब इतने तूफ़ान झेल लिये तो इसे भी उसी तरह बुरा दु:स्वप्न समझ के भुला दीजिये …………एक बार ऐसा करने पर आपको मानसिक शांति मिलेगी और उसके बाद ये बात फिर याद नही आयेगी।
oof .......
baki fir kabhee.........
sailav sa umada hai iseese fir kabhee .
ओह
समय बहुत बलवान है... आपके चाहे कुछ नहीं हो सकता... यह बात बहुत बड़ी है, और हमारा मुह बहुत छोटा, फिर भी कहना चाहता हूँ कि शांत रहिये और प्रतीक्षा करिए... कभी न कभी वो दिन जरूर आएगा जो आप चाहती हैं... आप भी इंतज़ार करना और हम भी करेंगे, आपकी उसी पोस्ट का, जिसका शीर्षक होगा - आज मेरी अपनी परी से मुलाकात हुई...
दुर्भाग्यपूर्ण घटना , भूलने की कोशिश कीजिये ....
ये लम्हे दुख तो बहुत देते हैं ,और अपनों की बातें कष्ट भी देतीं हैं ,पर मां तो मां है दूसरों को माफ़ कर देती है तब वो तो अपनी बच्ची है .....जिस दिन उसको समझ आ जायेगा वो आप के आंचल में ही फ़िर छांव तलाशेगी ....शुभकामनायें उस दिन के इन्तज़ार में !
बेटी ने बहुत क्षुब्द्ध हो कर ही ऐसा कहा होगा ...आप माँ हैं.. बेटी के दर्द को भी समझ सकती हैं ...उसकी बातों से निराश न हों ..उसे संबल दें ...
ये सचमुच बेटी का दुर्भाग्य है ... उसे ज़रूर ग़लती का एहसास होगा एक दिन ... आप माँ हैं वो भी जब सच में माँ बनेगी तो एहसास होगा ...
कई बार बच्चे बचपने में या दूसरो की सुनी सुनाई बातो में उलझ कर या किसी के सिखाने पढ़ाने पर ये सब बाते कहदेते है , उस पर दुख तो होगा किन्तु तुरंत ही ऐसी बातो की जड़ तक पहुचना चाहिए बच्चे से पूछना चाहिए की उसने ऐसा क्यों कहा और फिर उसे समझा देना चाहिए और उसके बाद भी उस पर हमेसा इन बातो का ध्यान रखना चाहिए | अब तो ये बात बीत चुकी है और साचा कहा इसे भुलाया नहीं जा सकता दुखद है समाज की आक्ज यही स्थिति है बच्चो पर तो उसका असर होगा ही |
जीवन एक पल में कितना कुछ बदल देता है ....आपके ने शश किया जो जो इसे ब्लॉग पर लिखा...मगर अंततः आपको क्षमा करना ही होगा....आखिर आप माँ ही हैं न !
ऐसे लोंग जो दूसरों के जीवन में विष घोल देते हैं, लाख सिंहासन पर आसीन हों आज, अंतिम समय उन्हीं सिंहासन में कांटे निकलकर उनको तडपाते हैं.. मैं तो बस इतना ही कह सकता हूँ कि खुदा आपको ये सब बर्दाश्त करने की ताकत दे.. आप माँ हैं और जो सब सहन करे उसे ही माँ कहते हैं.. इसी लिए तो माँ को सबसे महान माना गया है.. भगवान से भी ऊंचा दर्ज़ा दिया है!!
निस्संदेह आप बेहद दुखी हैं .....
अगर आप ठीक हैं तो परवाह मत करिए ..किसी की परवाह न करें !
आप अपनी ईमानदारी से चले, आज नहीं तो कल वह जान जाएगी कि उसने माँ पर शक कर , गुनाह किया है !
और अगर कहीं यह लगता है कि उस कहानी का स्पष्टीकरण आवश्यक है तो उसके कष्ट को महसूस करते हुए, विवरण साझा करें ! सब ठीक हो जाएगा !
शुभकामनायें आपको !!
शब्दों का प्रहार अनन्तकाल तक चलता है |बहुत ही भावुक करने वाली पोस्ट है |
मां तो आखिर मां.....
दुखद
अत्यंत दुखद प्रकरण । आश्चय है की बेटी कैसे इतनी ममतामयी माँ को दुःख दे पायी। क्षमा कर दीजिये उसकी नादानी समझकर।
ओह आअम्म्खें नम हो गयी। लेकिन पूरी बात सुने बिना कुछ कह भी तो नही सकते। धीरज रखें। कभी सम्बन्ध सुधरेंगे। शुभकामनायें।
आपकी बातें सुनकर मन दुःख से भर गया ... लेकिन ऐसी स्थिति में मैं भी यही कहूँगा कि आप धीरज धरें ... धीरे धीरे सारी बातें सुलझ जाएँगी ... हाँ सच को सबके सामने ज़रूर लेन की कोशिश करें ...
दुर्भाग्यपूर्ण घटना
निस्संदेह आप बेहद दुखी हैं भावुक करने वाली पोस्ट
क्षमा जी , आपकी ही पोस्ट पढ़ कर एक बार मैंने लिखा था कि क्यों मनाएं हम ग़मों की बरसियाँ ...
कौन जानता है कि जिन्दगी क्या क्या इम्तिहान लेने वाली है..और अगर माफ न करें तो ये बेड़ियाँ हमें कभी जीने ही न दें ....
बेहद भावमय प्रस्तुति ... ।
क्षमा जी,
आप एक संवेदनशील और भावुक स्त्री हैं...आप हमें अपने दुःख में शामिल समझें...और इस प्रकरण को बस तिलांजलि दे दें...
हर स्त्री के जीवन में ऐसी बातें होतीं हैं, आप भी अपवाद नहीं हैं...जब सीता जी को ऐसा दिन देखना पड़ा था तो, हमारी और आपकी तो बिसात ही क्या...!
हाँ दुःख होता है जब अपने बच्चे भी, दूसरों के साथ शामिल हो जाते हैं...तो बस एक बात याद रखिये...पुत्र/पुत्री, कुपुत्र/कुपुत्री हो सकता/सकती है लेकिन माता कभी भी कुमाता नहीं होती...
फिर आपका तो नाम ही क्षमा है...अपने नाम को चरितार्थ अब बस कर ही डालिए....
इस पोस्ट को पढ़कर आपके प्रति अनुराग और मन में और अधिक प्रतिष्ठा जागी है...
आपकी 'अदा'
बहुत ही सुन्दर भावों से सजी पोस्ट.........शानदार.......प्रशंसनीय |
अत्यन्त दुखद। ऐसी घटनाओं को बुरा सपना समझ कर ही भूल जाना अच्छा है।
बहुत दुखद !
माँ तो माफ़ ही करना जानती है , बेटी के दर्द को भी समझे!
आज पहली बार इस ब्लॉग पर आई..."बिखरे सितारे" पढ़ते वक़्त इतना तो जान गई थी कि ये अपनी कहानी है....अपनों के दिए दर्द आसानी से दामन नहीं छोड़ते क्षमा जी, हर बार तनहा होने पर दिल को छीलते रहते हैं.....एक ही उपाय है, यही मान लें कि बेटी की कुछ बहुत बड़ी मजबूरियाँ रही होंगी.....
बेहद दुखद..यही आशा है कि माँ कभी बेटी के दर्द को भी समझेगी..
आप तो माँ है न ?बेटी के दर्द को आप ही सम झ सकती है और उस दर्द का निवारण भी आप ही कर सकती है |उसे क्षमा करके |
मुझे लगता है कि बच्चे माता-पिता के रूप में आदर्श चरित्रों को खोजते हैं। बस थोड़ा सा विपरीत सुन लिया और एकदम से आपा खो देते हैं। उनमें अनुभव की गहराई नहीं आ पाती, बस कल्पनालोक में ही विचरते हैं। एक दूसरा यह भी सत्य है कि जब तक बच्चों की बातों को दिल पर लगाकर रखेंगे, दर्द बना रहेगा। उन्हें माफ कर देने में ही और स्वस्थ संवाद बनाने से ही सुखी हुआ जा सकता है।
परीक्षा का समय जीवन में कभी भी उपस्थित हों जाता है.ऐसे में धीरज और विवेक की अति आवश्यकता है.जीत हमेशा सच्चाई की ही होती है.
क्षमा,बीती बातों को भुला देना,आपस के संवाद से मतभेदों पर स्पष्टीकरण करते हुए निकट आने की कोशिश करते रहना चाहिये.ये सब बातें निश्चितरूप से एक न एक दिन कामयाबी दिला देंगें और माँ-बेटी का प्रेम हों जायेगा.ऐसी मै दिल से भविष्यवाणी करता हूँ.
गम को भुलाने के लिए आप मेरे ब्लॉग पर कुछ देर के लिए आ जाईयेगा.कुछ सकूं जरूर मिलना चाहिये.
क्या दिल से निकली बात कही है आपने,
जिस पर बीतती है दर्द तो वही जानता है
आपकी इस दर्द को झेलने के लिये, जितनी प्रशंसा की जाये कम है, धन्यवाद,
कुछ गिने चुने ही तो ब्लागर्स है जो एक दूसरे को पढते है सराहते है या आलोचना करते है उनसे बेशक व्यक्तिगत बातें की जा सकती है अपना सुख दुख शेयर किया जा सकता है । आदमी अगर पुरानी बाते सोच सोच कर ही दुख मनाता रहेगा तो बडी मुश्किल होगी । इसलिये जो हो चुका सो हो चुका क्यों हुआ कैसे हुआ एसा नहीं होता तो क्या होता सोच सोच कर आदमी अनिद्रा का शिकार हो जाता ाहै और फिर नींद की गोलियां भी असर नहीं करती । इसी लिये कहा है बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले ।
ni:sandeh dukh to hota hi hai chahe koi bhi ho lekin aap jaisa koi nahi mila aaj tak jo apne antarman ki bhavnaon ko baant le ,ummid to kam hi hai lekin zindgi bhar ek khwahish rahegi , aapse ru-b-ru hone ki .
aapke is dukh mein yakin mano hum bhi dukhi hai .prabhu se prarthna hai ki aapko hausla or sab,r de ye sab sahne ka .
क्या आप हमारीवाणी के सदस्य हैं? हमारीवाणी भारतीय ब्लॉग्स का संकलक है.
अधिक जानकारी के लिए पढ़ें:
हमारीवाणी पर ब्लॉग पंजीकृत करने की विधि
हमारीवाणी पर ब्लॉग प्रकाशित करने के लिए क्लिक कोड लगाएँ
किसी भी तरह की जानकारी / शिकायत / सुझाव / प्रश्न के लिए संपर्क करें
दुखद
बेहद मार्मिक ,पढ़कर बहुत दुःख हुआ ! जो लोग माँ का महत्व नहीं समझते उन्हें बाद में पछताना पड़ता है !
एक टिप्पणी भेजें