बुधवार, 25 जनवरी 2012

किस नतीजेपे पहुंचे?

बुतपरस्तीसे हमें गिला,
सजदेसे हमें शिकवा,
ज़िंदगीके चार दिन मिले,
वोभी तय करनेमे गुज़रे !
आख़िर किस नतीजेपे पहुँचे?
ज़िंदगीके चार दिन मिले...

फ़सादोंमे ना हिंदू मरे
ना मुसलमाँ ही मरे,
वो तो इन्सां थे,जो मरे!
उन्हें तो मौतने बचाया
वरना ज़िंदगी, ज़िंदगी है,
क्या हश्र कर रही है
हमारा,हम जो बच गए?
ज़िंदगीके चार दिन मिले...

देखती हमारीही आँखें,
ख़ुद हमाराही तमाशा,
बनती हैं खुदही तमाशाई
हमारेही सामने ....!
खुलती नही अपनी आँखें,
हैं ये जबकि बंद होनेपे!
ज़िंदगीके चार दिन मिले,
सिर्फ़ चार दिन मिले..! 

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!




36 टिप्‍पणियां:

Kunwar Kusumesh ने कहा…

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

लोग ये कहाँ समझते...

शारदा अरोरा ने कहा…

Kshma ji , Gantantr divas ki aapko bhi bahut badhai ho , aapne bahut hi achchha hai likha ...bas yoon lag raha hai ki tay karne me gujaare ko tay karne me gujre ..likhen to behatar lagega ...ek to rhyming hai doosra ye sach bhi hai ki vakt gujara kaha jata hai bas gujar jata hai ...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

दो आरजू में कट गए दो इंतज़ार में.. ये तो बहुत ही मशहूर है, लेकिन जो आपने दिखाया वो तो कल्पना से परे है!!एक हकीकत!!
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति!! गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ आपको भी!!

vikram7 ने कहा…

देखती हमारीही आँखें,
ख़ुद हमाराही तमाशा,
बनती हैं खुदही तमाशाई
हमारेही सामने ....!
खुलती नही अपनी आँखें,
हैं ये जबकि बंद होनेपे!
ज़िंदगीके चार दिन मिले,
सिर्फ़ चार दिन मिले..!

अति सुन्दर

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें


vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........

vidya ने कहा…

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति!! गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ !!

alka mishra ने कहा…

बिलकुल सही बात है

अब से हमें संभल जाना चाहिए.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

फ़सादोंमे ना हिंदू मरे
ना मुसलमाँ ही मरे,
वो तो इन्सां थे,जो मरे ...

Sach kah hai in fasaadon mein keval insaan hi marte hain ... khoon sabka ek sa hota hai ... jism bhi eksa hota hai ....

Atul Shrivastava ने कहा…

गहरे भाव लिए सुंदर रचना।

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....

जय हिंद... वंदे मातरम्।

dinesh aggarwal ने कहा…

बहुत सुन्दर,
मजहब हमें सिखाता,आपस मे मरना कटना।
दुर्भाग्य यह हमारा,मजहब में फिर भी बँटना।
कृपया इसे भी पढ़े-
क्या यही गणतंत्र है

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

....पर बदक़िस्मती यही है कि इसी में जुटे हैं सभी. लोग भूलना भी चाहें तो वोटों के शिकारी भूलने भी नहीं देते

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति!
रचना शब्द शब्द दिल में उतर गयी
************************
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....!
जय हिंद...वंदे मातरम्।

shikha varshney ने कहा…

बहुत अच्छे
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये.
--

Arun sathi ने कहा…

फ़सादोंमे ना हिंदू मरे
ना मुसलमाँ ही मरे,
वो तो इन्सां थे,जो मरे!

naman...behtareen rachna...ke liye..

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

शमा जी,

आपके ब्लॉग पर तो आना होता रहा है लेकिन आपकी शख्सियत इतनी ऊँची है कि न तो तारीफ करने और न ही किसी टीका-टिप्पणी के लायक पाता हूँ अपने आप को।

बस आपके पढ़ के लौट जाता हूँ। और कभी-कभी आपसे बतिया जरूर लेता हूँ लेकिन अब तो वो भी मशरूफियत के चलते दूभर हो रहा है।

प्रस्तुत कविता में सच लिखा है मरने वाला न हिन्दू होता है न मुसलमान लेकिन उस इन्सान को हम पीछे छूटे हुए लोग पिर जातीय रंग देते हैं।

गणतन्त्र दिवस की अनेकों शुभकामनायें।

मुकेश कुमार तिवारी

Arvind Mishra ने कहा…

इस भाव पूर्ण उदगार पूर्ण सन्देश ने गणतंत्र शुभकामना को और भी सार्थक बना दिया !आपको भी इन्ही भावों के साथ गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं!उत्तर प्रदेश के चुनावों में अपनी अतिशय व्यस्तता के चलते आपकी कुछ पूर्व पोस्टों को पढ़ नहीं पाया शायद!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक जीवन ही मिला है, स्वयं निर्णय श्रेष्ठता का..

सदा ने कहा…

बेहद सार्थक एवं सटीक बात कही है आपने ..इस अभिव्‍यक्ति में ...गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ।

Aruna Kapoor ने कहा…

ज़िंदगीके चार दिन मिले,
सिर्फ़ चार दिन मिले..!

...दिल से उठते हुए दर्द का एहसास हो रहा है!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

उठते दर्द भरे अहसासों की सुंदर अभिव्यक्ति, अच्छी रचना,..
निवेदन,कई बार आपकी पोस्ट पर गया,मुझे खेद है आप मेरे पोस्ट पर एक भी बार नही पहुची,आइये स्वागत है,.....

NEW POST --26 जनवरी आया है....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति अच्छी रचना,..

NEW POST --26 जनवरी आया है....

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही सुंदर विचारों से सजी कविता क्षमा जी |

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

चार दिन राह चुनने और आपस में झगड़ने में ही कट जाते हैं। प्रभु से साक्षात्कार कब होगा..? मुक्ति कब मिलेगी ?
..बहुत ही सुंदर भाव हैं आपकी कविता में।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

चार दिन राह चुनने और आपस में झगड़ने में ही कट जाते हैं। प्रभु से साक्षात्कार कब होगा..? मुक्ति कब मिलेगी ?
..बहुत ही सुंदर भाव हैं आपकी कविता में।

Kailash Sharma ने कहा…

फ़सादोंमे ना हिंदू मरे
ना मुसलमाँ ही मरे,
वो तो इन्सां थे,जो मरे!

...कहाँ समझ पाते हैं लोग यह बात...बहुत सारगर्भित और सुन्दर अभिव्यक्ति...बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें!

मनोज कुमार ने कहा…

रचना जीवन की अभिव्यक्ति है।

vikram7 ने कहा…

बसंत पंचमी की शुभकामनायें

Pradeep Kumar ने कहा…

फ़सादों मे ना हिंदू मरे
ना मुसलमाँ ही मरे,
वो तो इन्सां थे,जो मरे!
उन्हें तो मौतने बचाया
वरना ज़िंदगी, ज़िंदगी है,
क्या हश्र कर रही है
हमारा, हम जो बच गए?
ज़िंदगी के चार दिन मिले...
बहुत खूब ! ज़िन्दगी ज़िन्दगी है अगर ये सबकी समझ में आ जाए तो फिर इंसान इंसान का खून नहीं बहायेगा. दुर्भाग्य की बात है कि सबको मालूम है ज़िन्दगी चार दिन की है मगर फिर भी कोई नहीं संभालना चाहता -----------

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

bahut sahi kaha...
खुलती नही अपनी आँखें,
हैं ये जबकि बंद होनेपे!
ज़िंदगीके चार दिन मिले,
सिर्फ़ चार दिन मिले..!
yun hi waqt jaya kar dete, kahan samajh paate ki ek hi zindagi uske din bhi gine hue, fir bhi nasht kar rahe kalushta, krurta, krodh, kapat...
saarthak rachna, shubhkaamnaayen.

Apanatva ने कहा…

kashmkash pesh kartee sunder abhivykti

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

der se aaya, fir bhi gantantra diwas ki shubhkamnayen... behtareen rachna...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत अच्छी रचना,..

amrendra "amar" ने कहा…

लाज़वाब! बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति...

rajendra sharma ने कहा…

sundar rachanaa

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

देखती हमारीही आँखें,
ख़ुद हमाराही तमाशा,
बनती हैं खुदही तमाशाई
हमारेही सामने ....!
खुलती नही अपनी आँखें,
हैं ये जबकि बंद होनेपे!
ज़िंदगीके चार दिन मिले,
सिर्फ़ चार दिन मिले..!

बहुत गहन भाव ॥सुंदर रचना