मंगलवार, 24 जुलाई 2012
18 टिप्पणियां:
- Arvind Mishra ने कहा…
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ओह मैं समझ सकता हूँ ..मेरा मोगली भी इसी तरह मेरे पीछे आने की आदत में मारा गया और घोर पीड़ा में भी मेरी ओर मुंह उठा उठा कर देखता रहा और वह रात कालरात्रि बन गयी उसके लिए ..ओह आ गयी उसकी याद!
- 24 जुलाई 2012 को 8:01 am बजे
- shikha varshney ने कहा…
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उफ़ ...नम कर दीं आँखें आपने.
- 24 जुलाई 2012 को 8:49 am बजे
- ANULATA RAJ NAIR ने कहा…
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सिर्फ यही एक वजह है कि मैंने कभी कोई जानवर पाला नहीं.....ये इंसान से भी ज्यादा शिद्दत से प्यार करते हैं और आपको भी दीवाना बना देते हैं....
सादर
अनु - 24 जुलाई 2012 को 9:48 am बजे
- प्रवीण पाण्डेय ने कहा…
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अपने कुत्ते की आँखों में झाँकता हूँ तो वह बोलती हुयी सी लगती हैं, बिन कहे ही वे संवाद स्थापित कर लेते हैं।
- 24 जुलाई 2012 को 8:43 pm बजे
- सदा ने कहा…
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मन को छूती हुई यह पोस्ट ...
- 24 जुलाई 2012 को 11:07 pm बजे
- शारदा अरोरा ने कहा…
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behad samvedansheel
- 24 जुलाई 2012 को 11:25 pm बजे
- शारदा अरोरा ने कहा…
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interesting , pustak se v kavitri se parichy v sameeksha ke liye shukriya.
- 24 जुलाई 2012 को 11:43 pm बजे
- अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
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janwar insano se jyada vafadari aur pyar nibhate hain. aapke simba ne bhi vahi kiya.....jeewan bhar k liye ek avismarneey yaad chhod gaya.
marmik prasang. - 24 जुलाई 2012 को 11:48 pm बजे
- संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
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बहुत मार्मिक .... मैं समझ सकती हूँ ...मेरे पास भी है मेरा कैंडी जो सब समझता है और उसकी आँखें बोलती हैं ।
- 25 जुलाई 2012 को 12:54 am बजे
- मनोज कुमार ने कहा…
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बड़ा ही मर्मस्पर्शी कथा है।
यह सब रूहानी रिश्ते हैं। - 25 जुलाई 2012 को 9:59 am बजे
- दिगम्बर नासवा ने कहा…
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दिल को छूती है ये कहानी ... मर्म को भिगो गयी अंदर तक ... ...
- 26 जुलाई 2012 को 1:54 am बजे
- dr.mahendrag ने कहा…
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जानवर इन्सान से ज्यादा प्रेम और रिश्तों की भाषा को समझते हैं ,इसी सच्चाई को उकेरती एक मर्मस्पर्शी कथा
- 26 जुलाई 2012 को 4:16 am बजे
- Kailash Sharma ने कहा…
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बहुत मार्मिक....
- 27 जुलाई 2012 को 1:38 am बजे
- संजय भास्कर ने कहा…
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बहुत मार्मिक दिल को छूती
- 27 जुलाई 2012 को 8:04 am बजे
- देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…
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मार्मिक संस्मरण।
- 28 जुलाई 2012 को 10:10 am बजे
- डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…
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बहुत मार्मिक. कुत्ते के स्पर्श में एक अजीब-सा रोमांच होता है जैसे छोटे बच्चे की कोमलता. कुत्ते का चला जाना भी बड़ा दुःखदायी होता है.
- 29 जुलाई 2012 को 6:52 am बजे
- प्रेम सरोवर ने कहा…
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प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी। मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है। धन्यवाद ।
- 30 जुलाई 2012 को 7:40 am बजे
- Mahi S ने कहा…
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बहुत मार्मिक...दिल को छूती..
- 31 जुलाई 2012 को 2:34 am बजे
यह लडकी अपने दादा दादी ,माता, पिता तथा भाई बहनों समेत उनके खेत में बने मकान में, रहा करती थी. उसके दादा जी उसे रोज़ सब से करीब वाले बस के रास्ते पे अपनी कार से ले जाया करते.बस उसे एक छोटे शहर ले जाती जहाँ उस की पाठशाला थी.
जब से सिम्बा दो माह का हुआ वह भी गाडी में कूद जाया करता. जब कभी वो बच्ची बिना uniform के बाहर आती तो उसे गाडी के तरफ दौड़ने की परवाह न होती. वो तीनो एक दोराहे तक जाते जहाँ से बच्ची बस में सवार हो,चली जाती. हाँ,दादाजी को हमेशा सतर्क रहना पड़ता की,कहीँ सिम्बा गाडी से छलांग न लगा ले!
आम दिनों की तरह वो भी एक दिन था. लडकी बस में सवार हो गयी. जब बस स्थानक पे बस रुकी और वो उतरी तो देखा,सिम्बा बस के बाहर अपनी दम और कान दबाये खडा था! बड़े अचरज से उस के मूह से निकला," सिम्बा..!"
और सिम्बा अपना डर भूल के बच्ची के नन्हें कंधों पे पंजे टिका उस का मूह चाटने लगा...! बस का वह आखरी स्थानक था. बच्ची को सब प्रवासी जानते थे...सभी अतराफ़ में खड़े हो,बड़े कौतुक से , तमाशा देखने लगे!
ज़ाहिरन,सिम्बा उस कच्ची सड़क पे आठ नौ किलोमीटर, बस के पीछे दौड़ा था...और उसे लेने दादाजी को बस के पीछे आना पडा. अब सिम्बा को कार में बिठाने की कोशिश होने लगी. उसे विश्वास दिलाने के ख़ातिर, बच्ची कार में बैठ गयी...पर सिम्बा को विश्वास न हुआ...मजाल की वह कार में घुसे!
बच्ची को पाठशाला के लिए देर होने लगी और अंत में उसने अपनी शाला की ओर चलना शुरू कर दिया. सिम्बा उसके पीछे, पीछे चलता गया. अपनी कक्षा पे पहुँच बच्ची ने फिर बहुत कोशिश की सिम्बा को वापस भेजने की,लेकिन सब व्यर्थ! अंत में वर्ग शिक्षिका ने कुत्ते को अन्दर आने की इजाज़त देही दी! वो दिनभर उस बच्ची के पैरों के पास, बेंच के नीचे बैठा रहा!
उस समय सिम्बा साल भरका रहा होगा. बच्ची थी कुछ दस ,ग्यारह साल की..उस शाम जब दादा जी,सिम्बा और बच्ची घर लौटे तो सिम्बा की तबियत बिगड़ गयी....कभी न ठीक होने के लिए..जो तीन दिन वह ज़िंदा रहा,दिन भर बरामदे में,अपने बिस्तर पे पडा रहता. ठीक शाम सात बजे वह अपनी आँखें खोल ,रास्ते की ओर निहारता..जहाँ से वो बच्ची उसे आते दिखती...बच्ची आके उसका सर थपकती और वो फिर अपनी आँखें मूँद लेता. उसकी बीमारी के लिए कोई दवा नही थी.
तीसरी रात,पूरा परिवार सिम्बा के अतराफ़ में बैठ गया. सब को पता था,की,अब वह चंद पल का मेहमान है...लेकिन सिम्बा अपनी गर्दन घुमा,घुमा के किसी को खोज रहा था. बच्ची अपने कमरे में रो रही थी. उस में सिम्बा के पास जाने की हिम्मत नही थी. अंत में दादा जी बच्ची को बाहर ले आए...जैसे ही बच्ची ने सिम्बा का सर थपका,सिम्बा ने अपनी आँखें बंद कर ली...फिर कभी न खोली..वह लडकी और कोई नही,मै स्वयं थी...