मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

वो घर बुलाता है…

ये fusion वाली रचना ख़ास अरविन्द मिश्रा जी के अनुरोध पे!

जब ,जब पुरानी तसवीरें,

कुछ याँदें ताज़ा करती हैं ,

हँसते ,हँसते भी मेरी

आँखें भर आती हैं!



वो गाँव निगाहोंमे बसता है

फिर सबकुछ ओझल होता है,

घर बचपन का मुझे बुलाता है,

जिसका पिछला दरवाज़ा

खालिहानोमें खुलता था ,

हमेशा खुलाही रहता था!



वो पेड़ नीमका आँगन मे,

जिसपे झूला पड़ता था!

सपनोंमे शहज़ादी आती थी ,

माँ जो कहानी सुनाती थी!



वो घर जो अब "वो घर"नही,

अब भी ख्वाबोमे आता है

बिलकुल वैसाही दिखता है,

जैसा कि, वो अब नही!



लकड़ी का चूल्हाभी दिखता है,

दिलसे धुआँसा उठता है,

चूल्हा तो ठंडा पड़ गया

सीना धीरे धीरे सुलगता है!



बरसती बदरीको मै

बंद खिड्कीसे देखती हूँ

भीगनेसे बचती हूँ

"भिगो मत"कहेनेवाले

कोयीभी मेरे पास नही

तो भीगनेभी मज़ाभी नही...



जब दिन अँधेरे होते हैं

मै रौशन दान जलाती हूँ

अँधेरेसे कतराती हूँ

पास मेरे वो गोदी नही

जहाँ मै सिर छुपा लूँ

वो हाथभी पास नही

जो बालोंपे फिरता था

डरको दूर भगाता था...



खुशबू आती है अब भी,

जब पुराने कपड़ों मे पडी

सूखी मोलश्री मिल जाती

हर सूनीसी दोपहरमे

मेरी साँसों में भर जाती,

कितना याद दिला जाती ...



नन्ही लडकी सामने आती

जिसे आरज़ू थी बडे होनेके

जब दिन छोटे लगते थे,

जब परछाई लम्बी होती थी...





बातेँ पुरानी होकेभी,

लगती हैं कल ही की

जब होठोंपे मुस्कान खिलती है

जब आँखें रिमझिम झरती हैं

जो खो गया ,ढूँढे नही मिलेगा,

बात पतेकी मुझ ही से कहती हैं ....


छोट बच्चे के नज़रिए से ये भित्ती चित्र बनाया था. खादी सिल्क की पार्श्वभूमी पे पहले थोडा पेंट कर लिया और ऊपर से कढ़ाई की है.
कभी,कभी बचपन बहुत याद आता है...सपने आते हैं,जिन में मै स्वयं को एक बच्ची देखती हूँ...बचपन वाला घर दिखता है....बचपन के दोस्त और दादा दादी दिखते हैं...आँखें खुलने पे वो बेसाख्ता बहने लगती हैं...


वो घर बुलाता है…

7 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

आपने एकदम से नॉस्टैल्जिक कर दिया इस गहन भावपूर्ण फ्यूजन प्रस्तुति से
चित्र तो स्वार्गिक है! आभार मेरी फरमाईश पूरी करने के लिए
आपकी सृजनशीलता का एक उत्सव आपकी फ्यूजन रचनाओं की प्रदर्शनी का रूप ले सके यह कामना है !

बेनामी ने कहा…

मार्मिक चित्रण के साथ लम्बे अंतराल के बाद वापसी - आभार

वाणी गीत ने कहा…

सुन्दर है ये घर , स्मृतियों और कविता में सजीव !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

याद आता वह प्यारा सा, बचपन का घर।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही कोमल एवँ पावन अनुभूति !

Arvind Mishra ने कहा…

मेरी टिप्पणी भी नहीं दिख रही ? आभार तो दे ही दूं?

alka mishra ने कहा…

बहुत प्यारी कविता है
आपको नमन