दिलों में खुशी की कोंपल नहीं,
फिर ये मौसमे बहार क्यों है?
सूखे पड़े हैं पेड़ यहाँ,
इन्हें परिंदों का इंतज़ार क्यों है?
गुलों में शहद की बूँद तक नहीं,
इन्हें भौरों का इंतज़ार क्यों है?
दूरदूर तक दर्याये रेत है,
मुसाफिर तुझे पानी की तलाश क्यों है?
बेहरोंकी इस बेशर्म बस्तीमे ,
हिदायतों का शोर क्यों है?
कहते हैं,अमन-औ चैन का मुल्क है,
यहाँ दनादन बंदूक की आवाज़ क्यों है?
औरतको देवी कहते हैं इस देश में,
सरेआम इसकी अस्मत लुटती है,
मुल्क फिर भी खामोश क्यों है?
फिर ये मौसमे बहार क्यों है?
सूखे पड़े हैं पेड़ यहाँ,
इन्हें परिंदों का इंतज़ार क्यों है?
गुलों में शहद की बूँद तक नहीं,
इन्हें भौरों का इंतज़ार क्यों है?
दूरदूर तक दर्याये रेत है,
मुसाफिर तुझे पानी की तलाश क्यों है?
बेहरोंकी इस बेशर्म बस्तीमे ,
हिदायतों का शोर क्यों है?
कहते हैं,अमन-औ चैन का मुल्क है,
यहाँ दनादन बंदूक की आवाज़ क्यों है?
औरतको देवी कहते हैं इस देश में,
सरेआम इसकी अस्मत लुटती है,
मुल्क फिर भी खामोश क्यों है?
9 टिप्पणियां:
badhiya ...aapne bahut vakt bad kuchh post kiya hai ...
इंसान कि बेबसी का लेखा जोखा लखा है आपने ... इंसानियत को जंग लग गया है जैसे ..
जिन्दगी है ही कुछ ऐसी बेबसी की कहानी सी...
नए शब्दों से परिचय हुआ .......मिलकर अच्छा
लगा !
सुंदर रचना रची है आपने...
आह दर्द
बढ़िया प्रस्तुति , आदरणीय धन्यवाद !
नवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग में आनंद ~ ) - { Inspiring stories part - 4 }
बहुत ख़ूब!!
आपकी इस रचना को कविता मंच व म्हारा हरियाणा ब्लॉग पर साँझा किया गया है !
http://bloggersofharyana.blogspot.in/
http://kavita-manch.blogspot.in/
संजय भास्कर
bhawpoorn.......
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