बुधवार, 28 अप्रैल 2010

यादों की फुलवारी में

सिल्क के टुकड़े पे water कलर से पार्श्वभूमी बना ली...बाद में कढाई..


तितली बन,अल्हड़पन,

चुपके से उड़ आता है,

यादों की फुलवारी में,

डाल,डाल पे,फूल,फूल पे,

झूम,झूम मंडराता है...


वो ठंडी,ठंडी बादे सबा,

 आँगन में  उतरी शामें ,

पौधों के पीछे छुपना,

आँखमिचौली रचना ...

 

वो शामों का गहराना,

 फिर माँ का बुलाना,

किस  दिन रचा आखरी खेला 

कुछ याद तुम्हें भी होगा?


हाथ पकड़ मेलों में घूमना,

है याद तुम्हें वो आखरी मेला?

छोड़ा हाथ फिर ना पकड़ा?

क्यों फिर ना पकड़ा?

प्यारा अल्हड़पन छोड़ा?



25 टिप्‍पणियां:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

सुन्दर अल्हड सी कविता है ... बलि उम्र की प्यारी प्यारी यादें ... यादों में मीठी सी सिहरन ... कलि का फूल बन जाना ...
बढ़िया !

vandana gupta ने कहा…

ati sundar..........jaisi chitrkari vaisi hi kavita.........gazab.

kunwarji's ने कहा…

यादों के सागर में क्या खूब गोते लगवाये जी आपने!वहा से लौटने का मन था ही नहीं!पर आपको इसके लिए धन्यवाद जो कहना था,सो वापस आ गए!

कितनी सरलता और साधारणता से आप अपनी बात कह जाती है!ऐसा ही कुछ मै भी लिखना चाहता हूँ,पर अभी सफल नहीं हो पाया हूँ!मुझे काफी कुछ सीखना है आप जैसे अनुभवियो से!



कुंवर जी,

Parul kanani ने कहा…

bahut hi accha likha hai aapne!

Dev ने कहा…

लाजवाब प्रस्तुती ........बहुत खूब

Basanta ने कहा…

Lovely!

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

अद्भुत यात्रा का वर्णन है …अल्हड़पनसे यौवन तक की यात्रा..और प्रश्न पर समाप्त (?) होती ये रचना... एक प्रारम्भ का संकेत देतीहै...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बढि़या...

रोहित ने कहा…

aapke yaado ki phulwaari se nikli khusbu dil tak utar gayi...!!
atisundar rachna!
regards-
#ROHIT

nilesh mathur ने कहा…

वाह ! क्या बात है,सुन्दर रचना!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है दीदी.

बेनामी ने कहा…

waah bahut khub...
itni achhi rachna dene ke liye dhanyawaad.....
aur aapko badhai...
bachpan ka laparwaah jeewan...
achha laga padhkar....
-------------------------------------
mere blog par is baar
तुम कहाँ हो ? ? ?
jaroor aayein...
tippani ka intzaar rahega...
http://i555.blogspot.com/

कुश ने कहा…

चलते वक़्त तो साथ ही में था.. एक उम्र तक आते आते न जाने ये अल्हडपन कहाँ छूट जाता है..

Dimple ने कहा…

Hello ji,

It is wonderfully beautiful...

"वो शामों का गहराना,
फिर माँ का बुलाना,"

Itna achha likha hai and the piece of art (image) is simply wow!
You put in a lot of hardwork and it deserves appreciation.

Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरती से लिखा है यादों का सफर ....बहुत खूब

बेनामी ने कहा…

यादों की फुलवारी
सुखद बहुत ही प्यारी
शब्द भाव से भारी
संग फूलों की एक क्यारी

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

"क्षमा प्रार्थी हूँ" इसकी आवश्यकता नहीं - अगर ऐसा हुआ है और comment moderation से उसे रोका जा सकता है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं.

Apanatva ने कहा…

ye rachana to mujhe bhee apane bachapan kee galiyo ko ghuma laee .
humara bachapan samay samay par humare sath jeeta hai udahran hai aapkee ye pyaree see kavita .

Tej ने कहा…

aacha andaaj likhne ka.......

अबयज़ ख़ान ने कहा…

आपकी तारीफ़ करना तो मेरे लिए चोटी बात होगी.. बहुत ही उम्दा... बचपन आंखों के सामने नाचने लगा..

hem pandey ने कहा…

बार बार आती ही मुझको मधुर याद बचपन तेरी.

mridula pradhan ने कहा…

bahut sunder likha hai aapne.

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

अत्यंत ही सुन्दर. अल्हड़पन का प्यार सदा याद रहता है. चाहे इसे कुछ भी नाम दे दो - चाहे आकर्षण कह दो चाहे पहला प्यार कह दो या फिर नादानी कह दो. लेकिन होता है बहुत ही मीठा अनुभव और हमेशा याद रहने वाला.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है