अक्सर ही असमंजस में पडी रहती हूँ...कभी बिजली की बरबादी पे लिखने का मन होता है तो कभी इंसान ने पहन रखे मुखौटों पे. कभी बागवानी रिझाती है तो कभी परिंदे.
कभी नितांत अकेलापन खलता है तो कभी बचपन का घर, बुला,बुला के रुला देता है.
कभी याद आते वो कुछ पलछिन जब मैंने बने पदार्थों पे घरवालों ने यों हाथ मारा था जैसे हाथी सोंड में खाद्य पदार्थ उठा लेता है....लेने वालेकी नज़र टीवी की ओर ...क्रिकेट का मैच चल रहा है..परदे से कैसे नज़र हटाई जाये? तो हाथ तश्तरी की तरफ जाता है...टटोलता है,और मूह से आवाज़ निकलती है...अरे प्लेट खाली है....और आने दोना!
मै कई किस्मों की ब्रेड तथा केक, पेस्ट्रीज आदि घरमे बना लेती हूँ...एक दिन भरुवा ब्रेड बनाने की सूझी...अक्सर अलग,अलग फिलिंग डाल के बनाती हूँ...उस दिन पनीर कद्दूकस किया....उसमे मस्टर्ड सॉस, बारीक कटी प्याज, हरी मिर्च,हरा धनिया, थोडा मेयोनेज़, कली मिर्च आदि,आदि मिलाया...ब्रेड का आटा गूंध के फूलने के लिए (डबल होने के लिए) पहले ही रख दिया था...उसे छोटे चौकोनों में बेलना शुरू कर दिया..एक चौकोन पे पनीर,सॉस आदि का मिश्रण रखती,दूसरे चौकोन से उसे ढँक के किनारे चिपका देती . दस पंद्रह मिनटों में वो फूल जाता...एक के बाद एक गरमा गरम ट्रे बेक होके निकल रही थीं..
जब ब्रेड का आटा फूल रहा था, उतनी देर में दो तीन किस्म के केक बेक कर डाले. केक तथा ब्रेड में जो पंद्रह मिनटों का gap था, मैंने प्याज, पालक ,पनीर और हरी मिर्च के पकौड़े पेश कर दिए. बाहर बूंदाबांदी भी हो रही थी.
पकौड़ों वाली प्लेट उठा के मैंने वहाँ स्विस रोल के तुकडे,चंद चोकलेट केक के तुकडे और कुछ प्लेन केक के तुकडे रख दिए...निगाहें टीवी पे टिकाया हुआ एक हाथ हाथी की सोंड की माफिक आया और प्लेट में से एक टुकड़ा उठा अपने मूह में डाल दिया...
" ओह! ये क्या? मै समझा आलूका पकौडा है...!"
मै:" तो इस के बाद मत ले...बेक की हुई भरुआ ब्रेड बस दो मिनिटों में तैयार हो जायेगी..."
वो: " अरे मेरा ये मतलब नही...इसे भी रहने दो...वो भी आने दो.."
प्लेट अपनी तोंद पे रखी हुई थी और मेरे सुपुत्र बिना स्क्रीन पेसे नज़र हटाये बोल रहे थे...उसका हाथ प्लेट पे आना,वहाँ से जो हाथ लगे उसे उठाना और मूह में डालना...बिलकुल ऐसे लग रहा था जैसे हाथी अपनी सोंड बढ़ाके मूह में ठूंस रहा हो!
साथ पतिदेव भी मैच देखने जमे हुए थे. आसपास हो रही बात चीत से उन्हें कोई सरोकार नही था. उनका भी दाहिना हाथ बढ़ा और प्लेट में से एक टुकड़ा उठाके मूह में ले गया...
पतिदेव:" अरे! ये तुमने ब्रेड में मीठा क्यों भर दिया? वैसे बहुत स्वाद है...लेकिन ड्रिंक के साथ तो..."
मै:" उफ़! आपने केक उठाके खाया है...अपने दाहिने हात को कुछ और दाहिने मोड़ो, जो चाहते हो वो मिल जायेगा.."
फिर एकबार बिना प्लेट की तरफ नज़र उठाये वो हाथ( या सोंड) उठा और...और प्लेट की किनार पे कुछ ज़्यादाही ज़ोर से टिका..प्लेट ने उछाल खाई और गरमा गरम,( ऊपरसे बिलकुल परफेक्ट brown और कुरकुरे हुए) ब्रेड के भरुवा चौकोरों ने फर्श पे पटकी खाई!
पतिदेव:" उफ़! तुम्हारी भी कमाल है! तुम प्लेट भी ठीक से नही रख सकतीं ?"
अच्छा हुआ की एक और ट्रे भरके ब्रेड के चौकोर तैयार थे!
सत्यानाश हो इन मुई matches का!
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36 टिप्पणियां:
haha...ab kya karein cricket cheej hi aisi hai.....
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mere blog par meri ek purani rachna, jaroor aayein....
वाह क्या वर्णन है! क्या कमाल करती हैं आप भी, पता नही कितने गुण भरे है आप में.. हर बार एक नया गुण सामने आता है, इसे ही कहते है बहुमुखी प्रतिभा. काश हम भी आपका सानिन्ध्य पा सकते और स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठा सकते...
भाई हमें क्रिकेट व्रिकेट से कुछ नहीं लेना देना ..हम तो आपके घर एक दिन मेहमान बनके आने वाले हैं कसम से ..क्या क्या नाम ले डाले इतनी सी देर में...मजा ही आ गया.
(क्षमा जी आपके कमेन्ट में आया कि आपको मेरी कविता नहीं दिख रही पर उसके साथ आपका मेल आई डी नहीं है कृपया दे दीजिए.)
चलिए पुणे आने पर खाना तो लज़ीज़ मिलेगा...मैं बताऊँ. जब मैं कलकत्ता में था तो लंच के समय खाना शेयर करके खाते थे.. एक दक्षिण भारतीय मित्र जो खिलाता था उसकी सबसे बड़ी प्रोब्लेम यह होती थी कि जिसे मीठा समझ कर खाता था वो नमकीन और जो नमकीन समझूँ वो मीठा निकलता था..और तब स्वाद बिगड़ जाता था अच्छे खासे डिश का..बाद में पूछने लगा खाने से पहले कि स्वाद कैसा है!!!
waah aapke is vyanjan ke saath dekhne me unhe aur bhi maza aaya hoga.aapke is vyanjan ko hame bhi banane ki koshish karni padegi .sundar .
SACHMUCH YAHI HAAL HAI JI.... :) ROCHAK BHI MAJEDAR BHI
ab mai to ye hee poochoongee kya nahee aata aapko.....
first class homemaker ho........
:)
मैच का आकर्षण ही कुछ ऐसा होता है कि नजर हटाये नहीं हटती. :)
कुछ अपने भी संस्मरण याद आये :)
अरे वाह ! आपका एक नया रूप दिख रहा है इस पोस्ट में. ललचाती पोस्ट अच्छी है.
सुबह का समय है नाश्ता करने की सोच ही रही थी कि पोस्ट सामने आ गयी। बडी भूख लग आयी लेकिन इतना सब कुछ तो आता नहीं अब क्या करें? हमारी सूंड तो वहाँ तक पहुंचेगी नहीं। अच्छा चित्र खींचा है।
match jaisa bhi ho, par match ke sath pakore.........aur vyanjan, match ke maje ko do-guna jarur kar deti hai........:)
waise ye galat hai, sirf vidhi bata kar, kam se kam jo comment karte hain, unko to real vyanjan ki darkar hai!!:D:P
wahhh kamal kar diya....!! kya match milaya !! shubhkamnayen aise hi match making karte rahen...!!
Jai HO mangalmay ho
ऽअप तो कमाल करती हैं………………अब तो हमारी भी इच्छा है कि आपके हाथ के जायकेदार व्यंजन खाने की…………………इतना मजेदार तरीके से पेश किया है कि क्या बताऊँ……………मैच का तो जो हुआ हो मगर यहाँ तो मूँह मे पानी आ गया।
हा हा...एक ज़माने में कभी मैं भी क्रिकेट मैच का ऐसा ही शौक रखता था...अब थोड़ा कम हुआ है...एक किस्सा है, रुकिए अपने ब्लॉग पे लिखूंगा कुछ दिन में :)
पेस्ट्री, केक, पकौड़े, ब्रेड रोल..ह्म्म्म..ये बताइए कब बुला रही हैं...हमारे मुहँ में तो अभी से पानी आ गया, बस सब के नाम सुन के :)
बहुत बढिया!
क्रिकेट के मैच का मज़ा .... लााज़ खाने के साथ ... पकोड़ो के साथ .... पानी आ रहा है मुँह में ....
match fixing ke bad pakori bhi achhi nahi lagti achha match dikhaya badhai
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
ये क्रिकेट ऐसा ही होता है...
बहुत अच्छी पोस्ट रही.
are! aapki post padh kar to aanand aa gaya thoda idhabhi sarka deti to ham swad chakh lete .bahit hi badhya---
poonam
kshma ji rachna kafi achhi lagi, aur mujhe bhi apne beete din yaad aa gaye jab match dekhne baithti thi aur koi khabr nahi rahti thi ,,,,,,,,kab kitna time bita........
Bahut Sunder Varnan kiya hai aapne
आदरणीय Kshama जी
नमस्कार !
बहुत अच्छी पोस्ट रही.
टू इन वन । लेखन शैली उसी को कहते है जिसे पढते पढते वर्णित घटनाक्रम दिखने लगे । यह लेख कुछ इस तरह का ही है कि पढते पढते मैच देखने वाले का भी, व्यंजन बनाने वाले का भी और व्यंजन का भी दृश्य दिखने लगे । मुई मैच की जगह हम मुआं मैच भी कह सकते हैं
सत्यानाश हो मुई इस जीभ का मेरे मुँह मे तो इतनी चीज़ें देख कर पानी आ गया। मस्त पोस्ट। बधाई।
Isss---
Matches do not match with the life...
so match not with the matces but better match with your real match--
बहुत ही सुन्दर ....
मेरे ब्लॉग पर इस बार ....
क्या बांटना चाहेंगे हमसे आपकी रचनायें...
अपनी टिप्पणी ज़रूर दें...
http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html
waise main criket pasand nahi karta hun, par agar aisa khane ko mile to koi harj nahi ...:)
maaf kijiye lekin kripya apni sweekriti is link par dein... aur agar koi sujao ho to wo bhi..
http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html
सत्यानाश हो इन मुई matches का!
मजा आ गया
मुझे भी बहुत कोफ़्त होती है कई बार लेकिन किसी को बताता नहीं, पता नहीं कोन पागल कहने लगे
आजकल ऐसा लगता है
जिसे क्रिकेट का शौक नहीं उसे दुनिया पागल समझती है
अरे भाई और भी खेल है दुनिया में
शानदार लेख और उम्दा वर्णन.
क्षमा जी क्षमा चाहूंगी इतनी लेट आने के लिए.
लेकिन जल्दी बताइए की आप मुझे अपने घर कब बुला रही हैं. सीख नहीं पाउंगी तो कम से कम खा तो लुंगी ये सब.
:):):)
क्षमा जी , आपका वर्णन इतना सजीव होता है कि लगता है कि मैं भी वहीँ आसपास हूँ ! रोजमर्रा की घटनाओं को इतनी रोचकता से प्रस्तुत कर देना आपकी लेखनी का कौशल है ! बहुत अच्छा लिखती हैं आप !
आप कितनी अच्छी हैं काश कि कोई ैसे प्लोटें भर भर के हमारे सामने भी लाता और हमारे हाथ भी सूंड की तरह उठा लेते भरवां ब्रेड । तुसी ग्रेट हो भी और लिखते भी हो वढिया हो।
really interesting, u r a verstile writer, god bless you
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