जिस रात की,चाहते थे, सेहर ही ना हो,
पलक भी ना झपकी ,बसर हो गयी!
उस की पैरहन पे सितारे जड़े थे,
नज़र कैसे उतारते ,सुबह हो गयी!
झूम के खिली थी रात की रानी,
साँस भी ना ली ,खुशबू फना हो गयी...
जुगनू ही जुगनू,क्या नज़ारे थे,तभी,
निकल आया सूरज,यामिनी छल गयी!
22 टिप्पणियां:
जुगनू ही जुगनू,क्या नज़ारे थे,तभी,
निकल आया सूरज,यामिनी छल गयी!
bahut jabardast...
वाह बहुत सुंदर .
जिस रात की,चाहते थे, सेहर ही ना हो,
पलक भी ना झपकी ,बसर हो गयी!
सुंदर भावों से सजी रचना .....आपका आभार
आदरणीय क्षमा जी
नमस्कार !
बहुत ही सटीक लिखी गयी अभिव्यक्ति...
आपकी लेखनी अद्भुत है.....
....दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
बहुत सुंदर ........हमेशा की तरह
सुन्दर अहसास लिए अच्छी रचना।
अच्छी गीत रचना.. नवीनता है शब्दों में.. शीर्षक रोमन में क्यों??
bahut sundar likha hai.....
गज़ब के शेर लिखे है ……………हर शेर दिल मे उतरता हुआ।
झूम के खिली थी रात की रानी,
साँस भी ना ली ,खुशबू फना हो गयी...
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सुन्दर रचना!
सूरज कब किसके लिए रुका है?
इसलिए जो कर जल्दी कर ले रे मनुआ :)
आदरणीय क्षमा जी सादर अभिवादन |आपकी रचना तो अच्छी है ही लेकिन उससे भी बड़ा है आपका महान व्यक्तित्व मैं जब ब्लॉग में बिलकुल नया था तब से निः स्वार्थ भाव से आपका स्नेह मुझे मिलता रहता है |मैं इस इंसानियत के पवित्र भाव से अभिभूत हूँ |आभार
जिस रात की,चाहते थे, सेहर ही ना हो,
पलक भी ना झपकी ,बसर हो गयी! ---
दिल में उतर गया वैसे पूरी रचना ही खूबसूरत है .
जिस रात की,चाहते थे, सेहर ही ना हो,
पलक भी ना झपकी ,बसर हो गयी! ---
दिल में उतर गया वैसे पूरी रचना ही खूबसूरत है .
वाह .... बहुत खूब
आदरणीय क्षमा जी कान पकड़ के माफ़ी मांगता हूँ कि आपका यह ब्लॉग अभी तक नही पढ़ पाया था
..इससे पहले केवल एक रचना पढ़ी थी मैंने ....
अब माफ़ी मांग तो रहा हूँ अपनी गलती के लिए ...
जुगनू ही जुगनू,क्या नज़ारे थे,तभी,
निकल आया सूरज,.....यामिनी छल गयी!
पूरी कविता का एक एक शब्द आल्हादक ...क्या दर्द है क्या माधुर्य लिए हुए दर्द है...बहुत लाजबाब प्रस्तुति !
वाह ... बहुत खूब कहा है ।
बेहतरीन भाव ! हार्दिक शुभकामनायें आपको !
चारों शेर उत्तम
अच्छा है. बधाई
खूबसूरत भाव।
..सेहर या सहर।
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