पँछी तो कढाई से बना है. पत्तों के लिए सिल्क हरे रंग की छटाओं में रंग दिया और आकार काट के सिल दिए. घोंसला बना है,डोरियों,क्रोशिये और धागों से. पार्श्व भूमी है नीले रंग के, हाथ करघे पे बुने, रेशम की.
चल उड़ जा ओ परिंदे!
तू नीड़ नया बना ले रे ,
न आयेगा अब लौट के,
इक बार जो फैले पंख रे,
जहाँ तूने खोली आँखें,
जहाँ तूने निगले दाने रे !
37 टिप्पणियां:
वाह कितना सुन्दर और जीवंत !
BEHAD SUNDAR..........
KHNE KO SHABD KAM PAD JAATE HAI!
आदरणीय क्षमा जी!..
बहुत बढ़िया, लाजवाब!
निराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर.
अति सुंदर ओर लाजवाब रचना
बाह चित्र और रचना ..बहुत ही सुन्दर.
हम तो बाबुल तोरे अंगना की चिड़िया!!
चल उड़ जा रे पंछी!!
सुन्दर कृति........
पक्षी , उसका घोंसला और रचना
जीवन आगे बढ़ते रहने का नाम है, सुन्दर पंक्तियाँ।
जीवंत प्रस्तुति
घोंसले में पक्षी.. वाह..!!
जीवंत प्रस्तुति - वाह
क्षमा इतनी सुन्दर चीज़ें बना कर दिखाओगी तो मै किसी दिन जरूर फर्माइश कर बैठूँगी। तुम्हारी प्रतिभा देख कर खुशी होती है। शुभकामनायें।
कम शब्दों मं बढ़िया रचना!
कम शब्दों मं बढ़िया रचना!
वाह ...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
वाह वाह बहुत ही सुन्दर कृति।
किसकी तारीफ़ करूँ? पंक्तियों की या फिर चित्र की? :)
bahut khoobsoorat chitr aur panktiyan bhi ...
isme chhupe dard ko padh pa rahi hun main. aur aapki kadhayi ki kya tareef karu....lagta hai ki kahin koi bhi shabd aapki is kala ka apmaan na kar de.
बहुत सुन्दर ... लाजवाब रंग भरे आहें आपने दोनों में ... चित्र और शब्द .. कमाल है ...
सुंदर ... ...... जीवंत , मनमोहक प्रस्तुति....
अद्भुत सौंदर्यबोध !
आपकी कलाकृतियाँ और कवितायें, दोनों लाजवाब हैं. साहित्य और कला का यह संगम अनूठा है.
इस अनमोल सृजन के लिए आपको बधाई.
अत्यंत मनोहारी, बहुत सुन्दर!!
सुंदर चित्र, खूबसूरत पंक्तियां,
आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वाह!! बेहद कम शब्दों में एक गूढ़ बात कह दी आपने..
न आयेगा अब लौट के.. एक माता के लिए पुत्र प्रेम सा प्रतीत होता है.
कुछ शब्दों में जीवन का कितना कटु सत्य चित्रित कर दिया...लाज़वाब
वाह नितांत सुंदर व जीवंत
बहुत खूबसूरत
कल्पना भी
आकार भी
वाह !!
बहुत ही सुन्दर कविता क्षमा जी बधाई |
बहुत ही सुंदर कल्पना और कविता बधाई क्षमा जी |
बहुत ही सुंदर.
बहुत सुन्दर रचना ! इसमे नारी के उस रूप का वर्णन मिलता है जब वह बेटी से बहू बनकर दुसरे परिवार में जाती है अपनी दुनिया का विस्तार करने ...फिर पीछे की दुनिया बस याद बनके रह जाती है.........अगर मैं इन 6 पंक्तिओं का वर्णन करूँ तो पूरा अध्याय बन जायेगा और फिर भी कुछ न कुछ छूट ही जायेगा !
जब कवि पूरे समुद्र को अपने शब्दों के घड़े में बांध देता है तो बस उसकी कल्पना ही की जा सकती है वर्णन मुश्किल हो जाता है ......
डॉ. रत्नेश त्रिपाठी
नीड़ का निर्माण अच्छा किया है आपने।
सुन्दर कढाई ..व शब्द चित्र ...
छूटेंगी तेरी सखियाँ,
छूटेंगी नैहर की गलियाँ,
छूटेंगी दादी,माँ और बहन,
छूटेगा अब ये आँगन,
न लौटेगा मस्तीभरा सावन,
छूटेंगी ये गुड़ियाँ,...बहुत मामूम शब्दों में बचपन को चित्रित किया..सुन्दर..मेरे ब्लांग में आने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद...
बहुत सुन्दर और काफी रोचक
bahut badiya prastuti..
bahut pyari tasveer..
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