लेकिन क्यारियों में से पौधे जब गायब दिखते तो माँ और दादी दोनों हैरान हो जातीं! एक बार दादीमाँ को कहते सुना," पता नही इन पौधों को चूहे उखाड़ ले जाते हैं?"( उन्हें क्या पता था की,उनके घर में एक चुहिया है जो उखाड़ ले जाती है!!)
एक बार दादी माँ दादा से कह रही थीं ," वो जो शीशम के पेडवाला तालाब है वहाँ girenium और hollyhocks खूब उग रहे हैं! आपने भी देखा ना! समझ नही आता वहाँ उनकी पौध कैसे पहुँच जाती है?"
और इसी तरह बरसों बीते. उस एक शाम के बाद मै उस तालाब के किनारे बरसों तक नही गयी और बाद में वो सूख ही गया. सूख जाने से पहले वो कुछ ऐसा-सा दिखता था,जैसा की,चित्र में दिख रहा है.
सफ़ेद सिल्क पे तालाब और आसमान जल रंगों से बना लिए. फूल पौधे कढाई कर के बनाये हैं.
आईना देख,देख,
हाय रोया मेरा मन,
शीशे ने कहा पलट के,
खो गया तेरा बचपन.
पहन के बड़ी बड़ी चप्पल,
चलते थे नन्हें,नन्हें क़दम,
जब तन पे ओढ़ा करती,
माँ दादी की पैरहन..
छूटेंगी तेरी सखियाँ,
छूटेंगी नैहर की गलियाँ,
छूटेंगी दादी,माँ और बहन,
छूटेगा अब ये आँगन,
न लौटेगा मस्तीभरा सावन,
छूटेंगी ये गुड़ियाँ,
जिन्हें ढूँढेंगे तेरे दो नयन,
यादोंकी गली में रह जाएगा
नीले तालाब का खामोश दर्पण,
खोयेगी बहुत कुछ,
तब मिलेंगे तुझको साजन...
33 टिप्पणियां:
खोयेगी बहुत कुछ,
तब मिलेंगे तुझको साजन...
इन पंक्तियों ने तो नि:शब्द कर दिया ...।
पढता गया और भाव-विभोर होता रहा ... फिर इन पंक्तियों ने
"खोयेगी बहुत कुछ,
तब मिलेंगे तुझको साजन..."
मुझसे क्या कहा .... वो मैं अपने आप तक ही रखूँगा.
बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर चित्रण्।
बहुत ही भावपूर्ण वर्णन। बचपन की चुहियागिरी (एक चुहिया है जो उखाड़ ले जाती है!!) जहां एक ओर रोचक है वहीं प्रकृति का वर्णन मनभावन। और अंत में भावुक कर गई कवित।
कुल मिला कर -- अतिसुंदर!
भरपूर डोज नोस्टालजिया का
aaj bahut hi sundar laga, lekh bhi, kaddhai bhi aur kavita bhi..
तय नहीं कर पा रही हूँ कि कविता ज्यादा खूबसूरत है या तस्वीर.पर एक बात दोनों में जो प्रचुर है वह है भाव.
बचपन की सुखद स्मृतियाँ।
aapke bachpan ki manbhawan yade hame bhi apke us pasandeeda talab ke pas le gayi aur man ki aankhe un sunder foolo ko lage khile dekh rahi thi.
kavita ka komal bhawnaao se sunder srijan.
साजन से मिलन के सफर का मार्मिक चित्रण बहुत सुंदर
रचना और अभिव्यक्ति के अनोखे रंग.
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
यह तो आप ही हो जी,,
सुन्दर अहसास लिए अच्छी रचना।
क्षमाजी!..
निराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर.
ohhh...
क्षमा जी, सदियों से चली आ रही समाज की ये परम्परा ऐसी भावनाओं के बीच एक कसक ज़रूर पैदा कर देती है. बहुत अच्छा लिखा है आपने.
बचपन भी क्या होता है ।
बचपन की यादें - क्या निवेदन करुं उत्तम रचना है। साथ ही अफसोस होता है कि आज के बच्चे जब हमारी उम्र में पहुंचेगे तो क्या याद करेगें । बेचारों का बचपन तो बचपन है ही नहीं
आपकी पोस्ट तो अच्छी है ही साथ ही चित्र भी बहुत ही प्यारे हैं .......देखने का मौका देने के लिए धन्यवाद
man ki neeli jheel ka hi pratibimb ubhara hai aapne ...
bahut achchi.....
बचपन की यादों को इस लाजवाब चित्र में उतार लिया आपने ... और आपके शब्दों ने तो आँखों को नम कर दिया ... लाजवाब ...
छूटेंगी तेरी सखियाँ,
छूटेंगी नैहर की गलियाँ,
छूटेंगी दादी,माँ और बहन......बचपन याद आ गया
...अतिसुंदर!
आपकी दोनों ही कलाकृतियाँ लाजवाब हैं. बचपन सचमुच अनूठा होता है. जब तक छोटे होते हैं तो बड़े होने की जल्दी चाहे उनके चप्पलों में पांव दाल कर ही क्यूँ साबित न करना पड़े. और बड़े होने पर उन प्यारी यादों को संजोने के सिवा हमारे पास कोई और चारा नहीं बचता.
आभार
फणि राज
बहुत सुन्दर पोस्ट बधाई और उत्साहवर्धन हेतु आभार
बहुत सुन्दर पोस्ट बधाई और उत्साहवर्धन हेतु आभार
खोयेगी बहुत कुछ,
तब मिलेंगे तुझको साजन...
aapki ye rachna kafi prabhavshali hai man ko chhoo gayi .ati sundar aur sach bhi
बचपन की झिलमिलाती यादों को प्रतिबिंबित करता नीले तालाब का खामोश दर्पण... शब्द चित्र और तस्वीर दोनों की अनुपम छ्टा दिल को छू गई... बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
खोएगी सब कुछ तब तुझे साजन मिलेंगे और साजन अगर बे -दर्दी निकले .....आईने से संवाद ,और फिर खुद के बीतने का एहसास .सुन्दर भाव गीत अतीत को आन्जता.दुलारता पुकारता .
छूटेंगी तेरी सखियाँ,
छूटेंगी नैहर की गलियाँ,
छूटेंगी दादी,माँ और बहन,
छूटेगा अब ये आँगन,
न लौटेगा मस्तीभरा सावन,
छूटेंगी ये गुड़ियाँ,
जिन्हें ढूँढेंगे तेरे दो नयन,
यादोंकी गली में रह जाएगा
नीले तालाब का खामोश दर्पण,
खोयेगी बहुत कुछ,
तब मिलेंगे तुझको साजन...
waah Kshma ji ,
Great expression !
.
बचपन के रंग कितने सुन्दर होते हैं\ तुम्हारे3ए कढाई ने मन मोह लिया। शुभकामनायें।
कुछ नया पढने आये थे .प्रतीक्षित है .
ऐसी यादों से ही तो जीवन गुलजार है.. अन्यथा स्वतः चेहरे पर आने वाली मुस्कान को खोजना होता..
इस दोहरी सृजनाकत्मकता से खुशी हुई. रंगों-रेखाओं से और शब्दों से लगभग संपूर्ण सृजन हो जाता है.
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