बुधवार, 19 जून 2013

मेरे माज़ी की परछायी

किसीके लिए मैं हकीकत नही
तो ना सही !
हूँ  मेरे माज़ी की परछायी    ,
चलो वैसाही सही !
जब ज़मानेने मुझे
क़ैद करना चाहा
मैं बन गयी एक साया,
पहचान  मुकम्मल मेरी
कोई नही तो ना सही !
रंग मेरे कयी
रुप बदले कयी
किसीकी हूँ  सहेली,
किसीके लिए पहेली
हूँ  गरजती बदरी
या किरण धूपकी
मुझे छू ना पाए कोई,
मुट्ठीमे बंद करले
मैं वो खुशबू नही.
जिस राह्पे हूँ  निकली
वो निरामय हो मेरी
इतनीही तमन्ना है.
गर हो हासिल मुझे
बस उतनीही जिन्दगी
जलाऊं  अपने हाथोंसे
झिलमिलाती शमा
झिलमिलाये जिससे
एक आंगन,एकही जिन्दगी.
रुके एक किरण उम्मीद्की
कुछ देरके लियेही सही
शाम तो है होनीही
पर साथ लाए अपने
एक सुबह खिली हूई
र्हिदय मेरा ममतामयी
मेरे दमसे रौशन वफा
साथ थोड़ी बेवफाई भी,
कई सारे चेहरे  मेरे,
ओढ़े कयी नकाब भी
अस्मत के  लिए मेरी
था ये भी ज़रूरी
पहचाना मुझे?
मेरा एक नाम तो नही...

10 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अस्तित्व तो होता है हर किसी का ... कोई परछाई माने कोई हकीकत .. जरूरी है उसको स्वीकार करने की ...
गहरा एहसास लिए है रचना ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

जीवन भी एक स्‍वप्‍न है

शारदा अरोरा ने कहा…

कुछ देरके लियेही सही
शाम तो है होनीही
पर साथ लाए अपने
एक सुबह खिली हूई
bahut khoobsoorat..

Arvind Mishra ने कहा…

सचमुच एक पहेली :-)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (21-06-2013) के "उसकी बात वह ही जाने" (शुक्रवारीय चर्चा मंचःअंक-1282) पर भी होगी!
--
रविकर जी अभी व्यस्त हैं, इसलिए शुक्रवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

कुछ देरके लिये ही सही
शाम तो है होनी ही
पर साथ लाए अपने
एक सुबह खिली हूई....

बस इतनी सी चाहत है...
बहुत सुन्दर
सादर
अनु

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आत्मीयता ही परछाई बन जाती है..

Sarik Khan Filmcritic ने कहा…

मेरे माज़ी की परछायी
Ek Achchhi Kavita

Sarik Khan Filmcritic ने कहा…

मेरे माज़ी की परछायी

Bahut Badiya

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह क्‍या बात कही है ... आपने इन पंक्तियों में अनुपम भाव लिये उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति