दिन से दिन जुडा तो हफ्ता,
और फिर कभी एक माह बना,
माह जोड़,जोड़ साल बना..
समय ऐसेही बरसों बीता,
तब जाके उसे जीवन नाम दिया..
जब हमने पीछे मुडके देखा,
कुछ ना रहा,कुछ ना दिखा..
किसे पुकारें ,कौन है अपना,
बस एक सूना-सा रास्ता दिखा...
मुझको किसने कब था थामा,
छोड़ के उसे तो अरसा बीता..
इन राहों से जो गुज़रा,
वो राही कब वापस लौटा?
15 टिप्पणियां:
कितना सुन्दर चित्रण... और उतनी ही सुन्दर कढ़ाई... आपको बधाई !
बहुत ही मार्मिक और दर्द भरी अभिव्यक्ति.......!!
बहुत ही मार्मिकऔर दर्द भरी अभिव्यक्ति .......!!
बहुत ही मार्मिकऔर दर्द भरी अभिव्यक्ति .......!!
जाने वाले कभी नहीं आते...जाने वालों की याद आती है....फिर चाहे वो लम्हा हो या कोई शख्स...
सुन्दर भाव.
अनु
आपमें मौलिक सृजनात्मकता भरी पडी है -और कितना अर्थपूर्ण कलापूर्ण अतीत जिया है आपने - क्या यह कम है ?
चित्र के साथ शब्द भी बहुत सुंदर
जीवन का लंडा अरसा इस चित्र के रास्ते से गुज़र गया हो जैसे ... लाजवाब ....
क्या बात है ! बहुत ख़ूब !!!
अनुपम चित्रण
इन रहों से जो गुजरा वो राही कब वापिस लौटा य़
कितनी खूबसूरत अभिव्यक्ति और कलाकृति भी ।
पलों में खोती बरसों की जिन्दगी..
sundar chitran..
खूबसूरत कलाकृति ...........!!!
कितना सच...:(
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