परेशाँ हैं, चश्मे नम मेरे,
कि इन्हें, लमहा, लमहा,
रुला रहा है कोई.....
चाहूँ थमना चलते, चलते,
क़दम बढ्तेही जा रहें हैं,
सदाएँ दे रहा है कोई.....
अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......
कि इन्हें, लमहा, लमहा,
रुला रहा है कोई.....
चाहूँ थमना चलते, चलते,
क़दम बढ्तेही जा रहें हैं,
सदाएँ दे रहा है कोई.....
अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......
8 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर ......
वाह...
बहुत सुन्दर!
बहुत खूब .... दर्द भी खूबसूरती से लिखा जा सकता है ...
वो कौन निष्ठुर किन्तु भाग्यशाली शख्स है जिसे कोई इतना सच्चे मन से याद करता है!
वो बड़ा रहीमो करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर ना हो।।।।
गज़ब शख्सियत है भाई उसकी ...ईर्ष्या हो गयी उससे ... :-)
डब डब, स्वर आ रहा है कोई..
दर्द भी सुन्दरता से व्यक्त हुआ है.
कितनी हसीन शिकायत है इस चाँद से ...
ऐसे में कौन जल न जाए ...
दर्द भी खूबसूरती से
सुंदर रचना के लिए आपको बधाई
शब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)
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