अचानक ख़याल आया ,ये इस ब्लॉग परकी १००वी पोस्ट है!
इन पहाड़ों से ,श्यामली घटाएँ,
जब,जब गुफ्तगू करती हैं,
धरती पे हरियाली छाती है,
हम आँखें मूँद लेते हैं..
हम आँखें मूँद लेते हैं...
उफ़! कितना सताते हैं,
जब याद आते है,
वो दिन कुछ भूले,भूले-से,
ज़हन में छाते जाते हैं,
ज़हन में छाते जाते हैं...
जब बदरी के तुकडे मंडरा के,
ऊपर के कमरे में आते हैं,
हम सीढ़ियों पे दौड़ जाते है,
और झरोखे बंद करते हैं,
झरोखे बंद करते हैं,
आप जब सपनों में आते हैं,
भर के बाहों में,माथा चूम लेते हैं,
उस मीठे-से अहसास से,
पलकें उठा,हम जाग जाते हैं,
हम जाग जाते हैं,
बून्दनिया छत पे ताल धरती हैं,
छम,छम,रुनझुन गीत गाती हैं,
पहाडी झरने गिरते बहते हैं,
हम सर अपना तकिये में छुपाते हैं,
सर अपना तकिये में छुपाते हैं..
9 टिप्पणियां:
दोनों कलाकृतियां बड़ी ही सुन्दर हैं.
दोनों कलाकृतियां बड़ी ही सुन्दर हैं.
दोनों कलाकृतियां बड़ी ही सुन्दर हैं.
शत पोस्ट पर शत शत शुभकामनायें। प्रकृति को आँख बन्द कर मन में समेट लेने की हमारी चाह क्यों न प्रकृति में समा जाने की ही हो जाये।
यह हुयी न कोई बात ०सुखद अहसास !
बड़ी ही सुन्दर कलाकृतियां
शतकीय पोस्ट के लिए बहुत बहुत शुभकामनायें।
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...१००वीं पोस्ट की बधाई..
उफ़! कितना सताते हैं,
जब याद आते है,
वो दिन कुछ भूले,भूले-से,
ज़हन में छाते जाते हैं,..
भूले बिसरे पल हमेशा गुदगुदाते हैं ... जब आते हैं तो वहीं बस जाते हैं ...
१०० पोस्ट की बधाई ...
:)
सेंचुरी पोस्ट की बधाई!! :)
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