पहले तो सनम ने हमें आँसू बना आँखों में बसाया ,
बेदर्द , संगदिल निकला , आँसू को संगपे गिरा दिया !
२ ) निशाने ज़ख्म
रहने दो ये ज़ख्मों निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना ?
ये सौगाते तुम्हारी हैं,
सिमटी -सी यादें तुम्हारी हैं,
सब तो छीन लिया,
छोडो, जो दिल में हमारी हैं !
23 टिप्पणियां:
dil ko choone walee kshnikae
दर्द पर ताली बजाना बुरी बात है, लेकिन कविवर की रचना पर वाह वाह कहना बुरी बात नहीं।
वाह वाह
रहने दो ज़ख्मों के निशां ने देवदास उपन्यास की याद दिलादी । इस उपन्यास को दो बार फ़िल्माया जा चुका है । संगदिल और संग पे ,यहां अलंकार की छ्टा बिखेर दी क्षणिका मे । आंसू बना कर आंखों मे बसाना और पत्थर दिल बन कर आंसू रूपी हम को पत्थर पर गिराना -इतना ज़्यादा तो नही जानता किन्तु यह क्षणिका अनुप्राश अथवा उपमा की श्रेणी में है
रहने दो ये ज़ख्मों निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना ?
wow !!!!!!!!!!!
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
अच्छी लगी आपकी दोनों छणिकायें
दूसरी अधिक अच्छी है..
nice
मुक्तक अच्छे हैं!
दूसरी क्षणिका बहुत सुन्दर है !
भावों से पूर्ण ये सुन्दर रचना ......
"मेरा हर जख्म तेरा है मेरे आंसू भी तेरे हैं,
हमें बेदर्द कहती हो मगर ये दर्द तेरे हैं,
मगर सौगात बनकर क्यूँ सिमट जाते हैं ये लम्हे,
इन्ही लम्हों में मुस्काते तेरी यादों के फेरे हैं..."
आपकी पंक्तियाँ बहुत सुन्दर हैं इसीलिए सोचा की इन पंक्तियों से जो प्रेरणा मेरे टूटे दिल में आ रही हैं..उसे आपसे कहे देता हूँ ताकि मैं आज से कुछ न कुछ ज़रूर सीख लिया करूँ..अर्ज़ किया है आप एहसान फरमायेंगी ऐसी उम्मीद है...
चम्पक ,नई दिल्ली
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी
रहने दो ये ज़ख्मों निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना
वाह सुन्दर रचना
रहने दो ये ज़ख्मों निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना ?
ये सौगाते तुम्हारी हैं,
सिमटी -सी यादें तुम्हारी हैं,
सब तो छीन लिया,
छोडो, जो दिल में हमारी हैं ! bahut pyaari dil ko chhoo gayi .
bhawpoorna aur dil ko chhune waali rachna....
achha laga...
http://i555.blogspot.com/ mein is baar तुम मुझे मिलीं....
jarror padhein...
सच है कभिकभी बस जख्म ही साथ देते हैं .... उन्हे ताज़ा रखने का मन करता है ....
अच्छा लिखा है बहुत ही ...
bahut bahut shukriya itna pyara comment aur lajawab panktiya sher ke roop me jo aapne likhee.
ab hamaree to umr ka takaza aisa hee likhane ka hai ;
maatee aapne padee hai na shayad ..........
खूबसूरत से दर्दीले अहसास
bahut dard hai shayri me..
par dil ko sikun de gai.badhai.
"रहने दो ये ज़ख्मों निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना?
ये सौगाते तुम्हारी हैं,"
संवेदनशील रचना
हृदयस्पर्शी प्रस्तुति,बधाई।
sundar aur samvedansheel-----.
kuch to mere paas chod do... kam shabdon mein acchi rachna..
पहले तो सनम ने हमें आँसू बना आँखों में बसाया ,
बेदर्द , संगदिल निकला , आँसू को संगपे गिरा दिया !
wahhhhhhhhhhhhhhhh kya marm hai
ek baat bataiye ...ye kshama or shama dono aap hi hai kya.
mail me " neerakela@gmail.com "
I m little bit confused .
aap blog pe aaye aabhari hun
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