मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

2 क्षणिकाएँ

 

१)संगदिल सनम

पहले   तो  सनम  ने हमें  आँसू  बना आँखों   में  बसाया  ,
बेदर्द , संगदिल  निकला ,  आँसू  को  संगपे  गिरा  दिया !


२ ) निशाने ज़ख्म

रहने दो ये ज़ख्मों  निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना ?
ये सौगाते तुम्हारी हैं,
सिमटी -सी यादें तुम्हारी हैं,
सब तो छीन लिया,
छोडो, जो  दिल में हमारी हैं !

23 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

dil ko choone walee kshnikae

Kulwant Happy ने कहा…

दर्द पर ताली बजाना बुरी बात है, लेकिन कविवर की रचना पर वाह वाह कहना बुरी बात नहीं।

वाह वाह

BrijmohanShrivastava ने कहा…

रहने दो ज़ख्मों के निशां ने देवदास उपन्यास की याद दिलादी । इस उपन्यास को दो बार फ़िल्माया जा चुका है । संगदिल और संग पे ,यहां अलंकार की छ्टा बिखेर दी क्षणिका मे । आंसू बना कर आंखों मे बसाना और पत्थर दिल बन कर आंसू रूपी हम को पत्थर पर गिराना -इतना ज़्यादा तो नही जानता किन्तु यह क्षणिका अनुप्राश अथवा उपमा की श्रेणी में है

Shekhar Kumawat ने कहा…

रहने दो ये ज़ख्मों निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना ?


wow !!!!!!!!!!!


bahut khub





shekhar kumawat


http://kavyawani.blogspot.com/

ज़मीर ने कहा…

अच्छी लगी आपकी दोनों छणिकायें

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

दूसरी अधिक अच्छी है..

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मुक्तक अच्छे हैं!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

दूसरी क्षणिका बहुत सुन्दर है !

Dev ने कहा…

भावों से पूर्ण ये सुन्दर रचना ......

CSK ने कहा…

"मेरा हर जख्म तेरा है मेरे आंसू भी तेरे हैं,
हमें बेदर्द कहती हो मगर ये दर्द तेरे हैं,
मगर सौगात बनकर क्यूँ सिमट जाते हैं ये लम्हे,
इन्ही लम्हों में मुस्काते तेरी यादों के फेरे हैं..."
आपकी पंक्तियाँ बहुत सुन्दर हैं इसीलिए सोचा की इन पंक्तियों से जो प्रेरणा मेरे टूटे दिल में आ रही हैं..उसे आपसे कहे देता हूँ ताकि मैं आज से कुछ न कुछ ज़रूर सीख लिया करूँ..अर्ज़ किया है आप एहसान फरमायेंगी ऐसी उम्मीद है...
चम्पक ,नई दिल्ली

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी
रहने दो ये ज़ख्मों निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना
वाह सुन्दर रचना

ज्योति सिंह ने कहा…

रहने दो ये ज़ख्मों निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना ?
ये सौगाते तुम्हारी हैं,
सिमटी -सी यादें तुम्हारी हैं,
सब तो छीन लिया,
छोडो, जो दिल में हमारी हैं ! bahut pyaari dil ko chhoo gayi .

बेनामी ने कहा…

bhawpoorna aur dil ko chhune waali rachna....
achha laga...
http://i555.blogspot.com/ mein is baar तुम मुझे मिलीं....
jarror padhein...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है कभिकभी बस जख्म ही साथ देते हैं .... उन्हे ताज़ा रखने का मन करता है ....
अच्छा लिखा है बहुत ही ...

Apanatva ने कहा…

bahut bahut shukriya itna pyara comment aur lajawab panktiya sher ke roop me jo aapne likhee.

ab hamaree to umr ka takaza aisa hee likhane ka hai ;
maatee aapne padee hai na shayad ..........

Arvind Mishra ने कहा…

खूबसूरत से दर्दीले अहसास

Ravi Rajbhar ने कहा…

bahut dard hai shayri me..
par dil ko sikun de gai.badhai.

बेनामी ने कहा…

"रहने दो ये ज़ख्मों निशाँ,
क्यों चाहो इन्हें मिटाना?
ये सौगाते तुम्हारी हैं,"
संवेदनशील रचना

हर्षिता ने कहा…

हृदयस्पर्शी प्रस्तुति,बधाई।

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

sundar aur samvedansheel-----.

Reetika ने कहा…

kuch to mere paas chod do... kam shabdon mein acchi rachna..

निर्झर'नीर ने कहा…

पहले तो सनम ने हमें आँसू बना आँखों में बसाया ,
बेदर्द , संगदिल निकला , आँसू को संगपे गिरा दिया !


wahhhhhhhhhhhhhhhh kya marm hai

ek baat bataiye ...ye kshama or shama dono aap hi hai kya.

mail me " neerakela@gmail.com "

I m little bit confused .

aap blog pe aaye aabhari hun