गुरुवार, 3 जून 2010

उस पार तो लगा दे!

सिल्क  पे  थोडा  water color,थोड़ी  कढाई .

अरे ओ आसमान वाले!
कब से नैय्या मेरी पडी है,
इंतज़ार में तेरे खड़ी है,
नही है खेवैय्या,ना सही,
पतवार तो दिला दे,
 उस पार तो लगा दे!

बुला रहा है मुझे,
वो दूर साहिलों से,
इस पार झील के,
मेरा कोई नही है..
उस पार तो लगा दे!

शाम ढल रही है,
घिरने लगे अँधेरे,
मछली मुझे बना दे,
बिनती करूँ हूँ तुझ से,
उस पार तो लगा दे..!

29 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

kavita ke saath painting aur bhi achchhi lagti hai...

बेनामी ने कहा…

मछली मुझे बना दे,
"बिनती करूँ हूँ तुझ से,
उस पार तो लगा दे..!"
निश्चल मनोकामना दुआ करते हैं "वो" अवश्य पूरी करें

Basanta ने कहा…

Beautiful poetry and art as always!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर बालगीत!

मनोज कुमार ने कहा…

जीत ही उनको मिली जो हार से जमकर लड़े हैं,
हार के भय से डिगे जो, वे घराशायी पड़े हैं।

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह ! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ... मन मोह लिया इस चित्र ने तो !

Unknown ने कहा…

बुला रहा है मुझे,
वो दूर साहिलों से,
इस पार झील के,
मेरा कोई नही है..
उस पार तो लगा दे!
.... nice

Parul kanani ने कहा…

lovely!

arvind ने कहा…

बुला रहा है मुझे,
वो दूर साहिलों से,
इस पार झील के,
मेरा कोई नही है..
उस पार तो लगा दे!
.......सुन्दर पंक्तियाँ .

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi bhawpurn

Saleem Khan ने कहा…

बुला रहा है मुझे,
वो दूर साहिलों से,
इस पार झील के,
मेरा कोई नही है..
उस पार तो लगा दे!

Kshma jee ye antra waqaee bahut achchha ban pada hai!!!!!!!!!

ज्योति सिंह ने कहा…

बुला रहा है मुझे,
वो दूर साहिलों से,
इस पार झील के,
मेरा कोई नही है..
उस पार तो लगा दे!

शाम ढल रही है,
घिरने लगे अँधेरे,
मछली मुझे बना दे,
बिनती करूँ हूँ तुझ से,
उस पार तो लगा दे..!
bahut hi sundar lagi .

alka mishra ने कहा…

वैसे प्यारी और बेहद मासूम सी प्रार्थना है ये तो , आप कविता कहती हैं तो मैं मान लेती हूँ
लेकिन पेंटिंग में तो नाव किनारे ही पर है तो आप नैया को किस पार लगाने की गुहार कर रही हैं
हा हा हा
मुझे तो पता ही नहीं चल पा रहा कि वाटर कलर कहाँ है और कढाई कहाँ

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

बहुत ही ख़ूबसूरत इल्तिजा है ऊपर वाले से... अगर नाख़ुदा नहीं,पतवार नहीं तो मछली बनकर पार करने की ख़्वाहिश!!! शयद आपसे पहले ऐसी दुआ किसी ने नहीं मांगी होगी… सचमुच बेहद ख़ूबसूरत!

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

बहुत ही ख़ूबसूरत इल्तिजा है ऊपर वाले से... अगर नाख़ुदा नहीं,पतवार नहीं तो मछली बनकर पार करने की ख़्वाहिश!!! शयद आपसे पहले ऐसी दुआ किसी ने नहीं मांगी होगी… सचमुच बेहद ख़ूबसूरत!

Asha Joglekar ने कहा…

सुंदर गीत, पर उस पार जाने की क्या जल्दी है अभी इस पार बहुत लोग हैं आप के ।
आशा करती हूँ आप का स्वास्थ्य सुधर रहा होगा ।

Dimple ने कहा…

Hello Kshma ji,

Aapne bahut sundarta se saare bhaawo ko likha hai...
Jaise dil ki baat ko spasht shabdo mein kiya ho!

Bahut achhi lagi mujhe aapki kavita!

Regards,
Dimple

शोभना चौरे ने कहा…

apki kvita padhkar bandini ka s.d. brman ji dvara geet yad aa gya
"mere sajn hai us par le chal par
o mere manjhi......."
achhi bhav naye

Arvind Mishra ने कहा…

सुन्दर कविता -आपकी ही क्यों, सभी की नैया पार लगे -हम सभी तो किनारे के मुन्तजिर हैं !

कडुवासच ने कहा…

...बेहतरीन!!!

अरुणेश मिश्र ने कहा…

कितनी विनम्र भाव रचना मे समाहित हैं ।
प्रशंसनीय ।

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

badhiya rachna.. aakhir me machali wali bat pasand aayi .. doob ke paar hona samjh aaya

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत सुन्दर

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

चित्र और कविता देखकर काफी समय तक यह सोचता रहा कि कलाकृति को देख कर कविता बनी या कविता को पढ़ने के बाद कलाकृति..! फिर निष्कर्ष निकाला कि कलाकृति ही पहले बनी होगी.

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर कविता -आपकी ही क्यों, सभी की नैया पार लगे -हम सभी तो किनारे के मुन्तजिर हैं !

स्वाति ने कहा…

सुन्दर पंक्तियाँ...सुन्दर चित्र ..

M VERMA ने कहा…

पतवार तो दिला दे,
उस पार तो लगा दे!
किनारे पर खड़े होकर उस पार जाने की जद्दोजहद में मछली बनने की लालसा .. वाह सुन्दर खयाल है पर मछलियाँ भी पार कब लगती हैं.
सुन्दर रचना

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

Beautiful painting and poem!
May the Lord listen to your prayer!
Amen!!!

Vinashaay sharma ने कहा…

बहुत खूब उस पार किसी भी तरह लगा दो ।