सिल्क पे थोडा water color,थोड़ी कढाई .
अरे ओ आसमान वाले!
कब से नैय्या मेरी पडी है,
इंतज़ार में तेरे खड़ी है,
नही है खेवैय्या,ना सही,
पतवार तो दिला दे,
उस पार तो लगा दे!
बुला रहा है मुझे,
वो दूर साहिलों से,
इस पार झील के,
मेरा कोई नही है..
उस पार तो लगा दे!
शाम ढल रही है,
घिरने लगे अँधेरे,
मछली मुझे बना दे,
बिनती करूँ हूँ तुझ से,
उस पार तो लगा दे..!
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29 टिप्पणियां:
kavita ke saath painting aur bhi achchhi lagti hai...
मछली मुझे बना दे,
"बिनती करूँ हूँ तुझ से,
उस पार तो लगा दे..!"
निश्चल मनोकामना दुआ करते हैं "वो" अवश्य पूरी करें
Beautiful poetry and art as always!
सुन्दर बालगीत!
जीत ही उनको मिली जो हार से जमकर लड़े हैं,
हार के भय से डिगे जो, वे घराशायी पड़े हैं।
वाह ! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ... मन मोह लिया इस चित्र ने तो !
बुला रहा है मुझे,
वो दूर साहिलों से,
इस पार झील के,
मेरा कोई नही है..
उस पार तो लगा दे!
.... nice
lovely!
बुला रहा है मुझे,
वो दूर साहिलों से,
इस पार झील के,
मेरा कोई नही है..
उस पार तो लगा दे!
.......सुन्दर पंक्तियाँ .
bahut hi bhawpurn
बुला रहा है मुझे,
वो दूर साहिलों से,
इस पार झील के,
मेरा कोई नही है..
उस पार तो लगा दे!
Kshma jee ye antra waqaee bahut achchha ban pada hai!!!!!!!!!
बुला रहा है मुझे,
वो दूर साहिलों से,
इस पार झील के,
मेरा कोई नही है..
उस पार तो लगा दे!
शाम ढल रही है,
घिरने लगे अँधेरे,
मछली मुझे बना दे,
बिनती करूँ हूँ तुझ से,
उस पार तो लगा दे..!
bahut hi sundar lagi .
वैसे प्यारी और बेहद मासूम सी प्रार्थना है ये तो , आप कविता कहती हैं तो मैं मान लेती हूँ
लेकिन पेंटिंग में तो नाव किनारे ही पर है तो आप नैया को किस पार लगाने की गुहार कर रही हैं
हा हा हा
मुझे तो पता ही नहीं चल पा रहा कि वाटर कलर कहाँ है और कढाई कहाँ
बहुत ही ख़ूबसूरत इल्तिजा है ऊपर वाले से... अगर नाख़ुदा नहीं,पतवार नहीं तो मछली बनकर पार करने की ख़्वाहिश!!! शयद आपसे पहले ऐसी दुआ किसी ने नहीं मांगी होगी… सचमुच बेहद ख़ूबसूरत!
बहुत ही ख़ूबसूरत इल्तिजा है ऊपर वाले से... अगर नाख़ुदा नहीं,पतवार नहीं तो मछली बनकर पार करने की ख़्वाहिश!!! शयद आपसे पहले ऐसी दुआ किसी ने नहीं मांगी होगी… सचमुच बेहद ख़ूबसूरत!
सुंदर गीत, पर उस पार जाने की क्या जल्दी है अभी इस पार बहुत लोग हैं आप के ।
आशा करती हूँ आप का स्वास्थ्य सुधर रहा होगा ।
Hello Kshma ji,
Aapne bahut sundarta se saare bhaawo ko likha hai...
Jaise dil ki baat ko spasht shabdo mein kiya ho!
Bahut achhi lagi mujhe aapki kavita!
Regards,
Dimple
apki kvita padhkar bandini ka s.d. brman ji dvara geet yad aa gya
"mere sajn hai us par le chal par
o mere manjhi......."
achhi bhav naye
सुन्दर कविता -आपकी ही क्यों, सभी की नैया पार लगे -हम सभी तो किनारे के मुन्तजिर हैं !
...बेहतरीन!!!
कितनी विनम्र भाव रचना मे समाहित हैं ।
प्रशंसनीय ।
badhiya rachna.. aakhir me machali wali bat pasand aayi .. doob ke paar hona samjh aaya
बहुत सुन्दर
चित्र और कविता देखकर काफी समय तक यह सोचता रहा कि कलाकृति को देख कर कविता बनी या कविता को पढ़ने के बाद कलाकृति..! फिर निष्कर्ष निकाला कि कलाकृति ही पहले बनी होगी.
सुन्दर कविता -आपकी ही क्यों, सभी की नैया पार लगे -हम सभी तो किनारे के मुन्तजिर हैं !
सुन्दर पंक्तियाँ...सुन्दर चित्र ..
पतवार तो दिला दे,
उस पार तो लगा दे!
किनारे पर खड़े होकर उस पार जाने की जद्दोजहद में मछली बनने की लालसा .. वाह सुन्दर खयाल है पर मछलियाँ भी पार कब लगती हैं.
सुन्दर रचना
Beautiful painting and poem!
May the Lord listen to your prayer!
Amen!!!
बहुत खूब उस पार किसी भी तरह लगा दो ।
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