वो यादें भुलाए नही भूलतीं,
तश्तरी लिए आसमान की,
सुनहरे सपने ऊषा परोसती,
जिन्हें दिन में मै बोती रहती,
लहलहाती फसल सपनों की,
उजालों में शाम के सिंदूरी,
संग सितारों के आती जो रजनी,
मै उन संग खेलती रहती,
भोर भये तक आँख मिचौली,
कभी भी थकती नही थी......
आज भी ऊषा आती तो होगी,
संग सपने लाती तो होगी,
जादुई शामों में सिंदूरी,सिंदूरी,
फसल लहलहाती तो होगी,
रैना,संग सितारों के चलती,
खेलती,मचलती तो होगी,
जा सबा! कह दे उनसे,
बुलाती है एक बिछड़ी,
सहेली उनके बचपनकी!
कह दे पहरों से तीनों,
मेरे द्ववार पे दस्तक,
हर रोज़ देते जाएँ,
फिर से लायें वो सपने,
हर भोर मुझे जगाएँ,
रह ना जाऊँ कहीँ,
मै आँखें मलती,मलती!
हर शाम आए लेके लाली,
आँगन में उतरे मेरे चाँदनी,
हो रातें अमावासकी,
हज़ारों,हज़ारों,सितारों जडी,
रहें आँखें मेरी ख़्वाबों भरी!
39 टिप्पणियां:
वाह ! क्या भाव भरे हैं ……………अपने साथ बहा ले गयीं आप तो…………………बेहद शानदार प्रस्तुति।
आज भी ऊषा आती तो होगी,
संग सपने लाती तो होगी,
जादुई शामों में सिंदूरी,सिंदूरी,
फसल लहलहाती तो होगी,
bahut khoobsurat ..chitr aur kavita dono..
बहुत सुन्दर और ऊपर से शानदार चित्र.
... बहुत सुन्दर ... बेहतरीन !!!
मन के भावों का सुन्दर चित्रण। और "तस्वीर" की बात ही अलग है। सुन्दर!
जा सबा! कह दे उनसे...बुलाती है एक बिछड़ी,
सहेली उनके बचपन की...
...
हर शाम आए लेके लाली...आँगन में उतरे मेरे चाँदनी,
हो रातें अमावास की,
हज़ारों, हज़ारों, सितारों जडी...रहें आँखें मेरी ख़्वाबों भरी!
मनमोहक हैं आपकी दोनों कृतियां...
हज़ारों,हज़ारों,सितारों जडी,
रहें आँखें मेरी ख़्वाबों भरी!
और फिर खूबसूरत कढाई के क्या कहने
बेहद शानदार
अतीत के आईने से उभरती तस्वीर -क्या कहने !
आदरणीय क्षमा जी
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए...............बहुत बहुत आभार.
..............कमाल की लेखनी है
वो यादें भुलाए नही भूलतीं,
तश्तरी लिए आसमान की,
सुनहरे सपने ऊषा परोसती,
जिन्हें दिन में मै बोती रहती,
लहलहाती फसल सपनों की,...
क्या सुन्दर कल्पना और भाव हैं जो सराबोर कर देते हैं मन को पूर्णतः...बहुत सुन्दर
कविता नहीं पढ़ी उसके बारे में कुछ नहीं कहूँगा. मैं तो बस आपके द्वारा काढ़ा गया चित्र देखता रहा. बेहतरीन कलाकारी.
सिंदूरी ख़्वाब से सजी सुंदर पंक्तियां।
वाह कितनी खूबसूरत कविता ..एक एक शब्द मोती सा चुन कर माला बनाई है आपने .
और चित्र तो मनोरम है.
अब मैंने तो कितनी बार दस्तक दी है ...आप द्वार खोलती ही नहीं :)
सुंदर चित्र और रचना.
वो यादें भुलाए नही भूलतीं,
तश्तरी लिए आसमान की,
सुनहरे सपने ऊषा परोसती,
जिन्हें दिन में मै बोती रहती,
लहलहाती फसल सपनों की,
उजालों में शाम के सिंदूरी,
संग सितारों के आती जो रजनी,
मै उन संग खेलती रहती,
भोर भये तक आँख मिचौली,
कभी भी थकती नही थी....
Beautiful expression !
.
kshama nishavd hoo.... kya kamal kee kalakar ho.....aur kavita sarahneey.............
adbhut sangam.......
kala aur lekhan ka...........
कह दे पहरों से तीनों,
मेरे द्ववार पे दस्तक,
हर रोज़ देते जाएँ,
फिर से लायें वो सपने...
अच्छा है, पर ऐसा अब संभव नहीं। अब न तो वे सपने हम देख सकेंगे और ना ही देखने के लिए हमारे पास पल बचे हैं। बचपन के देखे सपने भी तो अब कहां याद आते हैं, नए सपने तो बुनना ही भूल गए हम...। आपके सपने अवश्य पूरे होंगे, कोशिश जारी रखिए।
बेहद शानदार प्रस्तुति
क्षमा जी शुक्रिया मेरी नयी पोस्ट पर कमेन्ट देने के लिए. आप यहां आ सकती हैं.
Anamika7577@gmail.com
मुलतः आपकी रचानाओं की तुलना में यह एक लम्बी कविता है. प्रकृति वर्णन बहुत ख़ूबसूरत है. किंतु मध्य में यह क्या हो गया.. प्रकृति तो किसी तरह को कोई भेदभाव नहीं करती, फिर यह अचानक निराशावादी वक्तव्य क्यों! और अंत में आग्रह भी कि वह सब मुझे पुनः मिल जाए.
सम्भवतः जीवन की निराशा और अंधकार में उस सुंदरता से विमुख हो जाने का वर्णन है. यदि ऐसा है तो अच्छा कॉन्ट्रास्ट बन पड़ा है.
और हाँ, आपका शिल्प हर बार की तरह बहुत सुंदर.. बिल्कुल एक सम्पूर्ण कविता!
चित्र कलाकृति देखी कविता पढी दौनों आकर्षक। कविता में कल्पना भी ऐसी कि अमावस की रात सितारे जडी और साथ में आंगन में चादनी ? भी उतरे । यदि यह न बताया होता कि चित्र स्वयं का बना है तो इतने घ्यान से देखने की जरुरत ही नहीं थी क्योंकि आमतौर पर चित्र कहीं से ले लिये जाते है।
bahut sundar kavita, ek dam dhoop si khili khili, man khil utha, aapne jo shabd chune hain ia kavita me, behad sundar aur sarthak hain,
badhai aapko
आप चित्र जितना अच्छा बनाती है, उतनी ही सुन्दर तरीके से शब्दो को अपने रचना में पिरोती हैं । सुन्दर प्रस्तुति । बहुत दिनो तक ब्लाग जगत से दूर रहा, इसके लिये माफ़ी चाहूँगा ।
चित्र देख कर मन करता है तुम्हारे हाथ चूम लूँ। और कविता मे भी शब्दों का कमाल सराहणीय है। शब्दों का और धागो का ये मेल बहुत खूब रहा। बधाई।
kshmaji bahut sundar badhai
वाह क्षमा दोस्त ...बहुत खूब सजाया कविता को !
मुझे बहुत अच्छी लगी ..............
जय हो मंगलमय हो
जा सबा! कह दे उनसे,
बुलाती है एक बिछड़ी,
सहेली उनके बचपनकी!
कह दे पहरों से तीनों,
मेरे द्ववार पे दस्तक,
हर रोज़ देते जाएँ,
फिर से लायें वो सपने,
...बहुत खूब। शब्दों की कढ़ाई भी सुंदर।
कह दे पहरों से तीनों,
मेरे द्ववार पे दस्तक,
हर रोज़ देते जाएँ,
फिर से लायें वो सपने,
हर भोर मुझे जगाएँ,...
नादिया की तरह बहते पानी की तरह भीगे एहसासों का प्रहाव .... दूर खींच के ले गयी आपकी रचना ....
Namaste ji,
Kaise ho aap?
Behadddd sundar likha hai :)
Aur shabdo ka bahut achha mail-milaap banaaya hai aapne :)
Prem sahit,
Dimple
बहुत सुन्दर ......क्षमा जी...बेहद शानदार प्रस्तुति
wah .. bahut sunder bhav liye hai aapki rachna ... ek dam sar sar karti behti chali gayi dil mein ... bahut khoob
bahot achchi lagi.
बस शुक्रिया अदा करने आया हूँ, एक ईमानदार और लगातार बने रहने वाली पाठक को सलाम
करने आया हूँ. कुछ समय सोचालय पर मुसलसल वक्त देने का बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ.... यहाँ
भी ख्याल नदी से बह रहे हैं, इश्वर करे बहती रहे.. हमारी शुभकामनाएं... आमीन
Kavita sundar hai
जा सबा! कह दे उनसे,
बुलाती है एक बिछड़ी,
सहेली उनके बचपनकी!
कह दे पहरों से तीनों,
मेरे द्ववार पे दस्तक,
हर रोज़ देते जाएँ,
फिर से लायें वो सपने,,,,,,,,,
कितना अच्छा और सच्चा लिखा है भावनाएं पिरो दी है आपने ............
धन्यवाद.......
http://nithallekimazlis.blogspot.com/
बहुत देर से आयी आपकी इस श्रेष्ठ रचना को पढने के लिए। बधाई।
पहले तो मैं चित्र को ही देखते रह गया...बहुत खूबसूरत है...कविता भी बहुत अच्छी है...
hello ji,
aisa lag raha tha aap paint kar rahe ho aur main uski painting ko padd rahi hu inn shabdo ke maadhyam se...
bahut saare bhaav daal diye ek ek shabd mein aapne :)
mannn mein ghar kar gayi...
prem sahit,
Dimple
आँगन में उतरे मेरे चाँदनी,
हो रातें अमावासकी,
हज़ारों,हज़ारों,सितारों जडी,
रहें आँखें मेरी ख़्वाबों भरी...... बहुत खूब
एक टिप्पणी भेजें