शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

ख्वाबोंकी रह्गुज़र

खादी सिल्क के कपडे पे पहले जल रंगों  से रंग  भर दिया और ऊपर से कढाई कर दी.रास्तेका जो रंग है,वही कपडेका मूल रंग था.

हक़ीक़त की बंजर डगर से,
आओ ज़रा-सा  हटके चलें,
चलो ,ले चलूँ हँसी नज़ारों में,
ख्वाबोंकी शत रंगी रह्गुज़रमे!
छाँव घनेरी ,धूप प्यारी  सुनहरी,
दूर के उजालों की सुने सदाए,
उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!

33 टिप्‍पणियां:

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

आओ हुज़ूर तुमको सितारों में ले चलूँ.. वाला नशा है इस कविता में!! कलाकृति बेमिसाल!!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

bahut sundar najaare hain..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!
--
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

Arun sathi ने कहा…

बहुत मुश्किल हो जाएगी क्षमा जी। हकीकत की वंजर जमीन से निकल कर शतरंगी रहगूजारों मंे जी तो लेगें पर वापस आना पड़ेगा तब क्या होगा.....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

Arvind Mishra ने कहा…

कला की दो विधाओं का अद्भुत मिश्रण -एक नयनाभिराम सिम्फनी -एक दिलकश फ्यूजन!

Rahul Singh ने कहा…

फिलहाल तो कविता असलियत से सपनों की ओर रास्‍ता दिखा रही है.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

दोनों ही कृतियां एक समान सुंदर.

निर्मला कपिला ने कहा…

दोनो भाव अच्छे हैं। शुभकामनायें।

Unknown ने कहा…

हक़ीक़त की बंजर डगर से,
आओ ज़रा-सा हटके चलें,
very much positive dost.....!! keep going


Jai Ho Mangalmay Ho

Kailash Sharma ने कहा…

उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!

बहुत ही सार्थक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हक़ीक़त की बंजर डगर से,
आओ ज़रा-सा हटके चलें

बहुत सुन्दर ...

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर ख्वाब सी रचना -
खुश रहने का संकेत देती है .
बधाई .

Dimple ने कहा…

Hello :)

Ek aur achha comment aa raha hai :)
Sapno k ek chote se shehar se :)

Bahut achha likha hai... hamesha ki tarah... kuch alag sa aur kuch achhi vibes aa gayi padne ke baad :-)

Excellent!

Regards,
Dimple

ZEAL ने कहा…

.

उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये....

कभी कभी सपनों में खो जाना ही मन कों विश्राम देने का सबसे बेहतरीन उपाय है ।

.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति ...

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

चलो ,ले चलूँ हँसी नज़ारों में,
ख्वाबोंकी शत रंगी रह्गुज़रमे!
छाँव घनेरी ,धूप प्यारी सुनहरी,
दूर के उजालों की सुने सदाए,
उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!

बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ...

*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”

BrijmohanShrivastava ने कहा…

पढने से पहले चित्र देख लिया और समझा गूगल से साभार लिया होगा या किसी यान से किसी हरे भरे बागीचे का चित्र खींच लिया है फिर पढा । अब क्या अर्ज करूं । वाकई हकीकत से थोडा हट कर चलो भी और देखो भी।ख्वाबों की सतरंगी रहगुजर जो कपडे का मूल रंग है।उलझा लो दामन उनसे जहां कढाई की गई है। रंग से भरा हुआ जल और साथ ही छांव घनेरी । असलियत बुलाये तो भी ऐसा मंजर छोड कर भला जाने को किसका मन चाहेगा

shikha varshney ने कहा…

चित्र और कविता दोनो बहुत सुन्दर हैं.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सार्थक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

Neeraj Kumar ने कहा…

बहुत ही अच्छी कृति भी, कविता भी...

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

वाह! इस बार खूबसूरत कलाकृति से मेल खाती सुंदर पंक्तियाँ।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

वाह ! इस बार खूबसूरत कलाकृति से मेल खाती सुंदर पंक्तियाँ।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

वाह ! इस बार खूबसूरत कलाकृति से मेल खाती सुंदर पंक्तियाँ।

Vijuy Ronjan ने कहा…

bahut hi sundar abhivyakti hai.Behtareen rachna.

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही सुन्दर नज्म आपने लिखी है बधाई |

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही सुन्दर नज्म आपने लिखी है बधाई |

Kunwar Kusumesh ने कहा…

संक्षिप्त मगर सारगर्भित बिलकुल वैसे ही जैसे गागर में सागर.

पंकज मिश्रा ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति! बधाई |

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

गलती से एक ही कमेंट तीन बार प्रकाशित हो गया। इसका खेद है। कृपया दो कमेंट डीलीट कर दें।

Vijuy Ronjan ने कहा…

उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!
Khubsurat si sacchayi.
Bayann karne ka andaz nirala.Badhayi.

निर्झर'नीर ने कहा…

हक़ीक़त की बंजर डगर से,
आओ ज़रा-सा हटके चलें,

सुन्दर नज्म

ज्योति सिंह ने कहा…

उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!
umda .kabhi ye bhi thik hai .

अनुभूति ने कहा…

कला और काब्य का अनूठा संगम !!!
सदा जय हो आपकी......