खादी सिल्क के कपडे पे पहले जल रंगों से रंग भर दिया और ऊपर से कढाई कर दी.रास्तेका जो रंग है,वही कपडेका मूल रंग था.
हक़ीक़त की बंजर डगर से,
आओ ज़रा-सा हटके चलें,
चलो ,ले चलूँ हँसी नज़ारों में,
ख्वाबोंकी शत रंगी रह्गुज़रमे!
छाँव घनेरी ,धूप प्यारी सुनहरी,
दूर के उजालों की सुने सदाए,
उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!
33 टिप्पणियां:
आओ हुज़ूर तुमको सितारों में ले चलूँ.. वाला नशा है इस कविता में!! कलाकृति बेमिसाल!!
bahut sundar najaare hain..
उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत मुश्किल हो जाएगी क्षमा जी। हकीकत की वंजर जमीन से निकल कर शतरंगी रहगूजारों मंे जी तो लेगें पर वापस आना पड़ेगा तब क्या होगा.....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
कला की दो विधाओं का अद्भुत मिश्रण -एक नयनाभिराम सिम्फनी -एक दिलकश फ्यूजन!
फिलहाल तो कविता असलियत से सपनों की ओर रास्ता दिखा रही है.
दोनों ही कृतियां एक समान सुंदर.
दोनो भाव अच्छे हैं। शुभकामनायें।
हक़ीक़त की बंजर डगर से,
आओ ज़रा-सा हटके चलें,
very much positive dost.....!! keep going
Jai Ho Mangalmay Ho
उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
हक़ीक़त की बंजर डगर से,
आओ ज़रा-सा हटके चलें
बहुत सुन्दर ...
बहुत सुंदर ख्वाब सी रचना -
खुश रहने का संकेत देती है .
बधाई .
Hello :)
Ek aur achha comment aa raha hai :)
Sapno k ek chote se shehar se :)
Bahut achha likha hai... hamesha ki tarah... kuch alag sa aur kuch achhi vibes aa gayi padne ke baad :-)
Excellent!
Regards,
Dimple
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उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये....
कभी कभी सपनों में खो जाना ही मन कों विश्राम देने का सबसे बेहतरीन उपाय है ।
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सुन्दर अभिव्यक्ति ...
चलो ,ले चलूँ हँसी नज़ारों में,
ख्वाबोंकी शत रंगी रह्गुज़रमे!
छाँव घनेरी ,धूप प्यारी सुनहरी,
दूर के उजालों की सुने सदाए,
उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ...
*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”
पढने से पहले चित्र देख लिया और समझा गूगल से साभार लिया होगा या किसी यान से किसी हरे भरे बागीचे का चित्र खींच लिया है फिर पढा । अब क्या अर्ज करूं । वाकई हकीकत से थोडा हट कर चलो भी और देखो भी।ख्वाबों की सतरंगी रहगुजर जो कपडे का मूल रंग है।उलझा लो दामन उनसे जहां कढाई की गई है। रंग से भरा हुआ जल और साथ ही छांव घनेरी । असलियत बुलाये तो भी ऐसा मंजर छोड कर भला जाने को किसका मन चाहेगा
चित्र और कविता दोनो बहुत सुन्दर हैं.
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
बहुत ही अच्छी कृति भी, कविता भी...
वाह! इस बार खूबसूरत कलाकृति से मेल खाती सुंदर पंक्तियाँ।
वाह ! इस बार खूबसूरत कलाकृति से मेल खाती सुंदर पंक्तियाँ।
वाह ! इस बार खूबसूरत कलाकृति से मेल खाती सुंदर पंक्तियाँ।
bahut hi sundar abhivyakti hai.Behtareen rachna.
बहुत ही सुन्दर नज्म आपने लिखी है बधाई |
बहुत ही सुन्दर नज्म आपने लिखी है बधाई |
संक्षिप्त मगर सारगर्भित बिलकुल वैसे ही जैसे गागर में सागर.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति! बधाई |
गलती से एक ही कमेंट तीन बार प्रकाशित हो गया। इसका खेद है। कृपया दो कमेंट डीलीट कर दें।
उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!
Khubsurat si sacchayi.
Bayann karne ka andaz nirala.Badhayi.
हक़ीक़त की बंजर डगर से,
आओ ज़रा-सा हटके चलें,
सुन्दर नज्म
उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!
umda .kabhi ye bhi thik hai .
कला और काब्य का अनूठा संगम !!!
सदा जय हो आपकी......
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