मैंने कब मुकम्मल जहाँ माँगा?
जानती हूँ नही मिलता!
मेरी जुस्तजू ना मुमकिन नहीं !
अरे पैर रखनेको ज़मीं चाही,
माथे पर एक टुकडा आसमाँ,
पूरी दुनिया तो नही माँगी?
bahut hi kam shbdo me aapne apni baat kah di , badhayi sweekar kare.
----------- मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है . आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे. """" इस कविता का लिंक है :::: http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html विजय
मुकम्मल जहां नहीं मिलता जानती हूं। गजल भी है कहीं जमी तो कही आसमां नहीं मिलता । पैर रखने केा जगह चाही थी सही भी है जमीन बहुत ही कम दी है पैर फैलाउ तो दीवार से सर लगता है।आसमान का भी एक ही टुकडा मांगा था पूरी कायनात कहां मांगी थी ।छोटी सी रचना संदेश देती है कि व्यक्ति को उतना ही मांगना चाहिये जितनी आवश्यकता हो
26 टिप्पणियां:
इस माँग को भी पूरा करने से डर लगता है, कभी किसी ने सिर्फ तीन क़दमों में पूरी क़ायनात नाप दी थी, और देने वाले को पाताल में जगह मिली...
jisko itna mil jaye usse dunia ki kya jarurat....
bahut sundar .....
Jai HO Mangalmay ho
badhiya , kahan milta hai mutthi bhar asman , jo milta hai vo bhi , mutthi se fisal jata hai ...
kuchh panktiyon me pure jahan ko samet liya..:)...aur fir salil bhaiya ka comment wo to lajabab hai..!
अब इतने पर तो हक़ होना ही चाहिए परवर दिगार -भावपूर्ण पंक्तियाँ
पूरी दुनिया से प्यार भरा एक जहाँ ही मुकम्मल होता है। बहुत भावमय क्षणिका। शुभकामनायें।
bahut hi kam shbdo me aapne apni baat kah di , badhayi sweekar kare.
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
बहुत खूब..
मुकम्मल जहां नहीं मिलता जानती हूं। गजल भी है कहीं जमी तो कही आसमां नहीं मिलता । पैर रखने केा जगह चाही थी सही भी है जमीन बहुत ही कम दी है पैर फैलाउ तो दीवार से सर लगता है।आसमान का भी एक ही टुकडा मांगा था पूरी कायनात कहां मांगी थी ।छोटी सी रचना संदेश देती है कि व्यक्ति को उतना ही मांगना चाहिये जितनी आवश्यकता हो
बेहतरीन एवं उम्दा!!
ye bhi haq hai magar koi samjhe jab .sundar .
kya baat he!
sudnsr abhivyakti Kshama ji
मैंने कब मुकम्मल जहाँ माँगा?
जानती हूँ नही मिलता!
ekdam jeewan ka sachcha roop.
बहुत भावमय क्षणिका। शुभकामनायें।
सुंदर प्रस्तुति बधाई
सुंदर प्रस्तुति बधाई
BAHUT SUNDAR !
ह्म्म्म... बहुत कम शब्दों में ढेर सारी भावनाएं...
कहीं भीतर उतारी है आसमान को छूने वाली पंक्तियाँ...
सच है ... ये कुछ भी नहीं ... पर कभी कभी ऊपर वाला इतना बेरहम हो जाता है की कुछ नहीं देता ... गहरे जज़्बात पिरोये हैं ..
ye thodi si chaah hi puri ho jaye to istri isi ko swarg samjhne lagti hai. lekin itna bhi nahi milta.
bahut bhaavpoorn rachna.
भावनात्मक कविता ! दिल की हाय है !
No word other than ... "Beautiful"...
Regards,
Dimple
बेहतरीन एवं उम्दा!!......
पूरी दुनिया तो नही माँगी?...फिर उसे क्या दिक्कत है देने में...लेकिन फिर भी मांग पूरी नहीं होती :)
बहुत ही सुन्दर और कोमल काब्यांजलि...
आपने तो क्षणिका में जिंदगी को समेट दिया बहुत गहरा लिखा है, ....आपके भाव सिर्फ महसूस किये जा सकते है उनकी तारीफ़ में कुछ कहना बहुत मुस्किल होता है
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