कभी,कभी ज़िंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं,जहाँ केवल सवाल ही सवाल होते हैं! हर तरफ चौराहे...जिन्हें अपना माना,जान से ज्यादा प्यार किया...पता चलता है,वो तो परायों से बद्दतर निकले! किस पे विश्वास करें? आखिर ज़िंदगी का मकसद क्या है....बस चलते रहना?महीनों गुज़र जाते हैं,हँसी का मुखौटा ओढ़े और अन्दर ही अन्दर गम पिए! इम्तिहान की घड़ियाँ बिताये नहीं बीततीं! शायद ऐसे किसी दौर से गुज़रते हुए ये रचना लिख दी है!
ना खुदाने सतायाना मौतने रुलाया
रुलाया तो ज़िन्दगीने
मारा भी उसीने
ना शिकवा खुदासे
ना गिला मौतसे
थोडासा रहम माँगा
तो वो जिन्दगीसे
वही ज़िद करती है,
जीनेपे अमादाभी
वही करती है...
मौत तो राहत है,
वो पलके चूमके
गहरी नींद सुलाती है
ये तो ज़िंदगी है,
जो नींदे चुराती है
पर शिकायतसे भी
डरती हूँ उसकी,
गर कहीँ सुनले,
पलटके एक ऐसा
तमाचा जड़ दे
ना जीनेके काबिल रखे
ना मरनेकी इजाज़त दे....
27 टिप्पणियां:
पर शिकायतसे भी
डरती हूँ उसकी,
गर कहीँ सुनले,
पलटके एक ऐसा
तमाचा जड़ दे
ना जीनेके काबिल रखे
ना मरनेकी इजाज़त दे....
बहुत संवेदनशील रचना..आखिरी पंक्तियाँ लाज़वाब..जिंदगी से उसकी शिकायत से क्या फायदा..जियो उस हर पल को जो सामने आये..बहुत सुन्दर
इस पर तो विचार करना पड़ेगा..
बहुत भावुक रचना ....
bahut hi achchhi rachna .
gahre bhawon ki kavita.bahut achchi lagi.
ज़िंदगी जैसी भी है, बहुत ख़ूबसूरत है :)
वाह..क्या खूब लिखा है आपने।
बहुत प्यारी रचना !
kshama ji,
bahut bhaavpurn rachna hai. zindgi se shikaayat to yun sabhi ko hoti kyonki ja chaha nahin milta aur aarzoo hai ki khatm nahin hoti...bahut badhaai.
बहुत गहन भाव -
दर्द से भरी- बहुत सुंदर रचना -
मौत तो राहत है,
वो पलके चूमके
गहरी नींद सुलाती है
ये तो ज़िंदगी है,
जो नींदे चुराती है
बडी गहरी बात कह दी…………सच मौत तो विश्रांति काल है।
संवेदन शील ...
इक झन्नाटेदार थप्पड़ कुदरत ने हमें धीरे से मारा है
टूट के बिखर न जाएँ कहीं , थोडा पुचकारा है ...
खुद की अपनी जिन्दगी पर भी मनुष्य का बस नहीं है -फिर यह सोच क्यों ?
aapke shabdo ke sateek chayan ne kavita ko prabhaavshaali bana diya hai. bahut sach baat kahi.
सचमुच जिन्दगी एक पहेली है!
सुन्दर रचना!
गुरुदेव गुलज़ार साहब ने भी एक जगह कहा है कि ज़िंदगी हर मोड़ पर हर रूप में मौत लिये मिलती है.. सिर्फ मौत ही है जो बस एक बार आती है अपने आग़ोश में लेकर कहली जाती है.. छल नहीं करती!!
सच दिल को छू गयी आपकी कविता ......
मौत तो राहत है,
वो पलके चूमके
गहरी नींद सुलाती है...
है तो सच ही
लेकिन
जिंदगी के भी सितम सहने ही होंगे
बस ...
ज़िंदा रहने तक ही .... !
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
होली की शुभकामनाएं |भावपूर्ण कविता |
कवित्व ही जो घने अन्धकार में भी प्रकाश का विश्वास बनाए रखता है...और शांत होकर, प्रकाश की प्रतीक्षा कर सकता है.इसलिए कवि की सत्ता सार्वभौम एवं सर्वोच्च है...
मेरी लाईफ में भी एक दिन ऐसा ही आया था...
अभी-अभी की तो बात है, मैंने भी एक कविता लिखी थी...
पर सच कहूँ, सच्चाई जानकर पहले तो दुःख होता है परन्तु कुछ वक़्त बाद ही लगता है, जितना जल्दी पता चला उतना अच्छा...
बस अब मज़े कीजिये कि आपकी लाईफ से भी बुराइयां चली गईं...
न शिकवा यार से , न शिकायत रकीब से , जो भी हुआ , खुदा से हुआ , या नसीब से ।
पर शिकायतसे भी
डरती हूँ उसकी,
गर कहीँ सुनले,
पलटके एक ऐसा
तमाचा जड़ दे
ना जीनेके काबिल रखे
ना मरनेकी इजाज़त दे...
very very nice. bahut sunder.
aapki rachna bahut pasand aai. isliye apni facebook par copy ki hai
होली की हार्दिक शुभकामनायें
खूब लिखा है आपने।
होली की हार्दिक शुभकामनायें
Wow!!
Simply nice...
I am speechless... :)
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