अपने आसमाँ के लिए,
पश्चिमा रंग बिखेरती देखो,
देखो, नदियामे भरे
सारे रंग आसमाँ के,
किनारेपे रुकी हूँ कबसे,
चुनर बेरंग है कबसे,
उन्डेलो भरके गागर मुझपे!
भीगने दो तन भी मन भी
भाग लू आँचल छुडाके,
तो खींचो पीछेसे आके!
होती है रात, होने दो,
आँखें मूँदके मेरी, पूछो,
कौन हूँ ?पहचानो तो !
जानती हूँ , ख़ुद से बातें
कर रही हूँ , इंतज़ार मे,
खेल खेलती हूँ ख़ुद से,
हर परछायी लगे है,
इस तरफ आ रही हो जैसे,
घूमेगी नही राह इस ओरसे,
अब कभी भी तुम्हारी
मानती नही हूँ,जान के भी..
हो गयी हूँ पागल-सी,
कहते सब पडोसी...
चुपके से आओ ना,
मुझ संग खेलो होली ...
27 टिप्पणियां:
कितना प्यार भरा निमंत्रण दे डाला आपने!....होली के सुन्दर रंगों का अत्यंत सुन्दर एहसास!
आगामी होली को देखते हुए बहुत ही सामयिक कविता। पढ़कर होली की मस्ती अभी से छाने लगी है।
वाह होली का रंग चढ़ने लगा ..आपकी तबियत अब कैसी है क्षमा जी ! आराम करिये.
बहुत सुंदर कोमल अहसास और उनकी सुंदर अभिव्यक्ति..
देखो, नदियामे भरे
सारे रंग आसमाँ के,
किनारेपे रुकी हूँ कबसे,
अनुपम भाव संयोजन लिए आसमां के रंग ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
रंग बिखेरो, होली आयी..
sundar kavita ...aap aaraam keejiye ...man hai ki kahta hi ja raha hai ...
क्यूँ याद आते हैं "वो" फागुन में?????
सुन्दर आमंत्रण क्षमा जी..
man ke bhaavon ka bahut achcha chitran kiya hai.
बेहतरीन प्रस्तुति...!
:)
आ भी जाओ कि आ गयी होली...
hamesha ki tarah apne hi andaj ki kavita.....yad or holi ke rang ka achha talmel dekhne ko mila.....swagat hai !
hamesha ki tarah apne hi andaj ki kavita.....yad or holi ke rang ka achha talmel dekhne ko mila.....swagat hai !
माहौल बनने लगा होली का।
चुपके से आओ ना,
मुझ संग खेलो होली ...
Bahut sundar... Dil k kareeb
सुन्दर सलोनी सी बासंती कविता
hamesha k tarah..nirmal...gahan...aur ati ati sundar...!!
madhur bhaw......
होली का माहौल अब बनने लगा है।
सुंदर कविता।
KSHAMA JI BEHAD SUNDAR RACHANA ....SADAR ABHAR.
लालित्य से भरपूर एक सुंदर कविता
नेह भरा निमंत्रण...सुन्दर!!
वाह...बेहतरीन!!!
बहुत ही सुन्दर कविता | क्षमा जी प्रणाम |आपके निरन्तर उत्साहवर्धन के प्रति आभार |
बहुत ही सुन्दर कविता | क्षमा जी प्रणाम |आपके निरन्तर उत्साहवर्धन के प्रति आभार |
होली एक ऐसा पर्व है जिसमें बुलावा नहीं भेजते.. लोग खुद ब खुद चले आते हैं रंगों के साथ..
जब कोई हो तो महीना भर पहले से उसी के इन्तजार में तरह तरह के पकवान बना के घर में जमा कर लेते हैं.. शायद इसका स्वाद उसे "पसन्द" आ जाये..
अद्भुत संवेदना है.. ये पर्व नहीं हमारी जीवन धारा हैं..
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