डालीपे नन्हीसी कली...!
सोंचा डालीने,ये कल होगी
अधखिली,परसों फूल बनेगी..!
जब इसपे शबनम गिरेगी,
किरण मे सुनहरी सुबह की
ये कितनी प्यारी लगेगी!
नज़र लगी चमन के माली की,
सुबह से पहले चुन ली गयी..
खोके कोमल कलीको अपनी
सूख गयी वो हरी डाली....
( भ्रूण हत्या को मद्देनज़र रखते हुए ये रचना लिखी थी ..)
21 टिप्पणियां:
मर्मस्पर्शी रचना....
बहुत गहन अभिव्यक्ति क्षमा जी.
अनु
गहन भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ... आभार
सूखी हुयी डाल फिर भी पेड़ से जुड़ी रहती है ... मार्मिक रचना
bahut pyari see dil ko chhuti rachna... sach hi kaha aapne kali jab phool ban kar khilne wali thi tabhi mali ne tod diya..:(
उफ़ ...बेहद मार्मिक .
गहन भाव लिये मार्मिक रचना..
... बेहद मर्मस्पर्शी प्रभावशाली अभिव्यक्ति
बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
जीवन को सहारा मिले..
इस देश में इस हत्या के लिए फॉंसी नहीं ही होगी...
मर्मस्पर्शी
kya kahun, nishabd hun.
sankshipt me asadharan kehne ki asadharan kshamta hai aap me kshama ji ...behad sundar ..!!
इस अभिशाप को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है ....
बहुत भावपूर्ण
एक कटु सत्य का साक्षात्कार
bina related shabdon ka prayog kiye ek bahut he serious idea bahut he halke tarike se prastut karne ke liye badhaiyan ..
bahut achchi rachna hai ..
maarmik!
मार्मिक ... कडुवे सच कों लिखा है ...
सुन्दर एवं भावपूर्ण...
आह !
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