सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

चश्मे नम मेरे....क्षणिका.



परेशाँ हैं, चश्मे नम मेरे,
कि इन्हें, लमहा, लमहा,
रुला रहा है कोई.....

चाहूँ थमना चलते, चलते,
क़दम बढ्तेही जा रहें हैं,
सदाएँ दे रहा है कोई.....

अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......

11 टिप्‍पणियां:

Creative Manch ने कहा…

अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......

aah ,,,,,, waaaah
kya baat hai
bahut hi sundar rachna hai
achha laga aakar

aabhaar

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......

अच्छी शिकायत की है आपने इस क्षणिका में!

संहिता ने कहा…

क्षमा जी बहुत अचछी कविता बन पडी है ।

Apanatva ने कहा…

bahut sunder shavdo me bhavo kee abhivyktee .

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सुंदर

Pooja Prasad ने कहा…

अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......

पहली बार आई आपके ब्लॉग पर, अब लगता है बार बार आना पड़ेगा।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 01-09 - 2011 को यहाँ भी है

...नयी पुरानी हलचल में आज ... दो पग तेरे , दो पग मेरे

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई...

वाह!
तीनों पद स्वतंत्र मुक्तक के सामान है...
बहुत सुन्दर लेखन...
सादर बधाई...

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया।

सादर

Sadhana Vaid ने कहा…

अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई.....

बहुत ही सुन्दर ! बहुत बहुत बहुत सशक्त रचना ! बधाई !

Unknown ने कहा…

अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......
बेहतरीन ..चांदनी बरसा के जलाने की कल्पना
..बहुत ही शशक्त रचना आपको शुभकामनायें एवं बधाइयाँ !!!