मत काटो इन्हें, मत चलाओ कुल्हाडी
कितने बेरहम हो, कर सकते हो कुछभी?
इसलिए कि ,ये चींख सकते नही?
ज़माने हुए,मै इनकी गोदीमे खेलती थी,
ये टहनियाँ मुझे लेके झूमती थीं,
कभी दुलारतीं, कभी चूमा करतीं,
मेरे खातिर कभी फूल बरसातीं,
तो कभी ढेरों फल देतीं,
कड़ी धूपमे घनी छाँव इन्हीने दी,
सोया करते इनके साये तले तुमभी,
सब भूल गए, ये कैसी खुदगर्जी?
कुदरत से खेलते हो, सोचते हो अपनीही....
सज़ा-ये-मौत,तुम्हें तो चाहिए मिलनी
अन्य सज़ा कोईभी,नही है काफी,
और किसी काबिल हो नही...
अए, दरिन्दे! करनेवाले धराशायी,इन्हें,
तू तो मिट ही जायेगा,मिटनेसे पहले,
याद रखना, बेहद पछतायेगा.....!
आनेवाली नस्ल्के बारेमे कभी सोचा,
कि उन्हें इन सबसे महरूम कर जायेगा?
मृत्युशय्यापे खुदको, कड़ी धूपमे पायेगा!!
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23 टिप्पणियां:
nagrikaran aur sadke chodee karane naye naye bhavan banane ke liye in pedo kee hee bali chad rahee hai......
sarthak post.......
aabhar
"सब भूल गए, ये कैसी खुदगर्जी?
कुदरत से खेलते हो,"
पर्यावरण के प्रति सजग रहने विशेषकर वृक्षों न काटने का सन्देश समसामयिक सुंदर रचना.
बहेतरीन रचना ......आज मानव जाती पेड़ों के साथ बहत बेरहमी से पेश आ रहा है ....आपकी रचना ये अहसास दिला रही है ......इस सजीव पर निर्जीव जैसे व्यहार न करें .......बहुत बहुत आभार
आप बुरा मत मान जाना......मगर थोडा सा और गहरा उतरें ना प्लीज़.....लिखने की शुरुआत कर ही दी है तो थोडा सा और गहरा उतर कर देखो ना.....आपकी चीज़ें लाज़वाब बन जायेंगी.....सच.....!!
बढ़िया सन्देश देती रचना!
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना! आपने रचना के माध्यम से बहुत ही बढ़िया सन्देश दिया है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
पर्यावरण पर इससे अच्छी रचना कोइ हो नहीं सकती क्योंकि इस रचना में बचपन की भावना जुडी है | वहीं काटने वाले को आपराधी और उसे कड़ी सजा का प्रावधान है ,आने वाले भविष्य की चिंता है ( आगामी पीढी की ) और म्रत्यु पूर्व साया तक नसीब न होने की चेतावनी है
"सज़ा-ये-मौत,तुम्हें तो चाहिए मिलनी
अन्य सज़ा कोईभी,नही है काफी,
और किसी काबिल हो नही..."
BAS YAHI KEHNA CHAUNGA ABHI TO.....
kunwar ji,
एक वेदना का सम्वेदनात्मक चित्रण …अंतिम पंक्तियाँ मर्म स्पर्शी हैं..मृत्युशय्या पर धूप में पाओगे... अजहूँ चेत गँवार!!!
bahut achha chitran aur utna hi achha sandesh bhi.....badhai!
बहुत ही प्यारा सन्देश.. काश हम लोग इसे समझे..
sarthak rachna ..kya karen insan ka zamiir mar raha hai
अए, दरिन्दे! करनेवाले धराशायी,इन्हें,
तू तो मिट ही जायेगा,मिटनेसे पहले,
याद रखना, बेहद पछतायेगा.....!
पछता रहे हैं पर मानता कौन है!!!!!!!!
पर्यावरण का पाठ पढ़ाती एक लाज़वाब प्रस्तुती
paryawaran bachane ke liye marmik sandesh hai ye
आप बुरा मत मान जाना......मगर थोडा सा और गहरा उतरें ना प्लीज़.....लिखने की शुरुआत कर ही दी है तो थोडा सा और गहरा उतर कर देखो ना.....आपकी चीज़ें लाज़वाब बन जायेंगी.....सच....
behtareen rachna.....
kaash main bhi aisa likh pata...
maine v koshish ki hai.....please visit...
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aapke margdarshan ki jaroorat hogi............
पहले तो मेरे ब्लाग पर आपकी प्रतिक्रया के लिए शुक्रिया और दूसरा ये कि आपके दोनो ही ब्लाग से बड़ी अजीब सी फीलिंग होती है...ऐसी जैसे लिखने वाले ने कभी कुछ खोया हो....हो सकता है मै गलत हूं लेकिन..
अए, दरिन्दे! करनेवाले धराशायी,इन्हें,
तू तो मिट ही जायेगा,मिटनेसे पहले,
याद रखना, बेहद पछतायेगा.....!
आनेवाली नस्ल्के बारेमे कभी सोचा,
कि उन्हें इन सबसे महरूम कर जायेगा?
मृत्युशय्यापे खुदको, कड़ी धूपमे पायेगा!!
bahut hi sundar rachna lagi ,isme aaj ke sandarbh ko rakkha gaya hai aur aham baat kahi gayi hai ,kash sab ko ilm ho jaaye is baat ka
सच में पर्यावरण संभाल आज हमारा पहला फ़र्ज़ है , अच्छा संदेश देती आपकी कविता खूबसूरत है
अच्छे भाव जगाती रचना।
नश्तर सा चुभता है उर में कटे वृक्ष का मौन
नीड़ ढूंढते पागल पंछी को समझाए कौन!
very good.
एक लाज़वाब प्रस्तुती
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