चश्मे नम मेरे....क्षणिका.
परेशाँ हैं, चश्मे नम मेरे,
कि इन्हें, लमहा, लमहा,
रुला रहा है कोई.....
चाहूँ थमना चलते, चलते,
क़दम बढ्तेही जा रहें हैं,
सदाएँ दे रहा है कोई.....
अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......
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14 टिप्पणियां:
क्या बात है क्षमा जी... बहुत ही बेहतरीन भावनात्मक रचना है ...
चांदनी, सदाएं और चश्मे नम ... ये तो हमेशा से ही रुमानियत भरे बिम्ब रहे हैं ... और उन्हें आपने बड़ी खूबसूरती से इस रचना में पिरोये हैं ...
अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......
चाँदनी जला रही है तो
धूप के साये में रहिये
खूबसूरत क्षणिकायें .. बहुत सुन्दर
अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......
सही है आपका शिकवा ..... चाँद ही घर जलाए तो ठंडक कौन पहुँचाए ....
...sundar rachanaa !!!
Nice..seems like a wait for someone!!
आपकी क्षणिका बहुत सुन्दर है!
अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......
यह मुझे बहुत पसंद आई!
रोने वाले से कहो उनका भी रोना रो ले
जिनको मजबूरी ए हालात ने रोने न दिया.
जिसने रुलाया वो खुद कितना रोया होगा, जिसकी सदा आपकोखींचे लिए जाती हो, उसकी सदा में कितनी कशिश होगी... और जो चाँदनी जलाए, वो अंदर तक कितना जली होगी.. बेहतरीन !!
रोने वाले से कहो उनका भी रोना रो ले
जिनको मजबूरी ए हालात ने रोने न दिया.
जिसने रुलाया वो खुद कितना रोया होगा, जिसकी सदा आपकोखींचे लिए जाती हो, उसकी सदा में कितनी कशिश होगी... और जो चाँदनी जलाए, वो अंदर तक कितना जली होगी.. बेहतरीन !!
बहुत दर्द भरी अभिव्यक्ति....
bahut achchha likha hai
badhai
अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई....
bahut hi sundar
बहुत सुन्दर और मार्मिक कविता है
बहुत सुन्दर
bahut bhavuk prastuti.........
asardaar apane padchinh chodne me...........
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