इक बोझ-सा है मनमे,
उतारूँ कैसे?
कहने को बहुत कुछ है,
कहूँ कैसे?
वो अल्फाज़ कहाँसे लाऊं,
जिन्हें तू सुने?
वो गीत सुनाऊं कैसे,
जो तूभी गाए?
लिखा था कभी रेत पे,
हवा ले गयी उसे...
गीत लिखे थे पानी पे,
बहा गयी लहरें उन्हें!
ना कागज़ है, ना क़लम है,
दास्ताँ सुनाऊँ कैसे?
ख़त्म नही होती राहें,
मै संभालूँ कैसे?
इक बोझ-सा है मनमे,
उतारूँ कैसे?
उतारूँ कैसे?
कहने को बहुत कुछ है,
कहूँ कैसे?
वो अल्फाज़ कहाँसे लाऊं,
जिन्हें तू सुने?
वो गीत सुनाऊं कैसे,
जो तूभी गाए?
लिखा था कभी रेत पे,
हवा ले गयी उसे...
गीत लिखे थे पानी पे,
बहा गयी लहरें उन्हें!
ना कागज़ है, ना क़लम है,
दास्ताँ सुनाऊँ कैसे?
ख़त्म नही होती राहें,
मै संभालूँ कैसे?
इक बोझ-सा है मनमे,
उतारूँ कैसे?
17 टिप्पणियां:
खूबसूरत...वाह के साथ एक आह भी निकली
वाह!बहुत सुन्दर!
aapkee panktiyon men chheepa dil ka bojh behad sajeev tareeke se jhalak raha hai, achchhee rachana ke lie badhai
क्षमा जी, आपकी कलाकृतियँ मिसिंग हैं दो चार बार से... उनको आपकी कविताओं के साथ साथ देखने की आदत सी पड़ गई है...लेकिन इस बार तो अपने रह्स्यवाद का ऐसा जाल बुना है कि क्या कहें..अच्छा होता है कभी कभी कुछ प्रश्नों का अनुत्तरित रह जाना!!
आपकी रचनाओं के साथ कलाकृतियों की भी प्रतीक्षा रहती है.
परसों तक अस्पताल में थी...एक ऑपरेशन हुआ. पर सच तो यह है,की,कुछ रचनाएँ मन में उभरती हैं,जिनके साथ कलाकृती मेल नही खाती...या फिर कलाकृती ऐसी बन जाती है,की,कोई रचना उसके लिए मौज़ूम नही लगती..! बस,इन्हीं वजूहात के चलते बिना कलाकृती की रचनाएँ पोस्ट कर रही हूँ.क्षमा चाहती हूँ!
उफ़ कितना दर्द भरा है………………अब आपकी तबियत कैसी है? इश्वर से प्रार्थना है ाआपको जल्द से जल्द स्वास्थ्य लाभ प्रदान करे।
wo alfaas kahan se lao
jinhe tu sune ?
wo geet sunau kaise
jo tu bhi gaaye ?
waah kya lines likhi hai .......amezing ....
...behatareen !!!
हम्म्म...तो ये है "सिमटे लम्हे", आपने पहले भी बताया था लेकिन मैं कन्फ्युज-सा हो गया था। तो अब मैं अपने ब्लौग-रोल में आपके नाम के साथ इस ब्लौग को जोड़ लेता हूँ।
पूजा जी कोई ब्लौग चलाती हैं क्या अलग से? वो कैसी हैं अभी?
आपकी कवितायें अलग से, चैन से पढ़ूँगा...
रचना बहुत सुन्दर है ...
उम्मीद है कि अभी आपका स्वास्थ अच्छा होगा ...
जल्दी से पूरी तरह ठीक हो जाइये ... मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनायें ...
आपकी कलाकृतियों का इंतज़ार है ...
बहुत खूब ... कभी कभी ये काग़ज़ कलाम भी कम पड़ जाता है इस बोझ को उतारा नही जा पता ....
अच्छे से निभाया है कविता को आपने ...
Hello Kshama ji :)
लिखा था कभी रेत पे,
हवा ले गयी उसे...
Kaash main bahut saarri comments bhej sakti... I loved it! What an emotional touch n pain is imbibed in this composition... Fantastic :)
Hats off!!
Regards,
Dimple
वाह मन की बात को अलग नजरिये से कहा है............
शब्द मौन हैं मेरे......बस औऱ कुछ नहीं कह सकता।
आप जल्दी स्वस्थ हों, यही कामना है मेरी।
लिखा था कभी रेत पे,
हवा ले गयी उसे...
गीत लिखे थे पानी पे,
बहा गयी लहरें उन्हें!
........दास्ताँ सुनाने की बेबसी का बहुत ही खूबसूरत इज़हार किया है आपने. अच्छे प्रतीकों के सहारे अपने उद्देश्य में सफल है यह कविता.
रेत , हवा , और पानी पर उकेरे कुछ शब्द
अपनी दास्ताँ खुद बयान कर रहे हैं
कुछ सवालों के जवाब ना हों तो अच्छा ही है
आपके शीघ्र स्वस्थ-लाभ की कामना करता हूँ
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