ऊन तथा रेशम के सूत से ये भित्ती चित्र मैंने बनाया है.
शोर उठा था नगर में,
आया है बसंत पूरी बहर में,
हमने भी सजाई क्यारियाँ,
सुन परिंदों की किलकारियाँ!
जाने क्या बात हुई,क्या हुई ख़ता ,
मेरी छोड़ सब की फूलीं फुलवारियाँ!
मुझ से ही क्यों बसंत रूठा,
क्यों हुई मेरी रुसवाईयाँ?
तब से आहें भरना छोड़ दिया,
किस आह की सुनवाई यहाँ?
27 टिप्पणियां:
अच्छी रचना।
आपके बनाये भित्ति चित्रों से नजर हटे तो रचना तक आऊं ..
बहुत सुन्दर चित्र हैं, मनमोहक शब्दों के साथ.
जाने क्या बात हुई,क्या हुई ख़ता ,
मेरी छोड़ सब की फूलीं फुलवारियाँ!
मुझ से ही क्यों बसंत रूठा,
जितने सुन्दर भित्ति चित्र, उतनी ही सुन्दर कविता.
वाकई चित्र रचना पर भारी पढ़ते है..
"ला-जवाब" जबर्दस्त!! सुन्दर चित्र.....सुन्दर कविता
होता है, कभी कभी ऐसा भी होता है!!पर किसे दोष दें!!
आज आपके शब्दों से कहीं आगे निकल गईं आपकी अंगुलियां. दोनों चित्र अद्वितिय हैं. मरे पास एक ही शब्द है 'वाह' !
भित्ति चित्रों को देखकर कुछ नया लगा। हम सोचने लगे ये कैसा चित्र है? कुछ अलग हटकर है, फिर नीचे कैप्शन पढ़ा कि आप ने बनाये हैं। बहुत रचनात्मक हैं आप, साहित्य के क्षेत्र में कला के क्षेत्र में भी।
कविता भी बहुत सुन्दर है। चित्र कविता के कथ्य के अनुरूप है। बहुत अच्छा। इतने सुन्दर चित्र के लिये धन्यवाद! अच्छा किया आपने बता दिया कि ऊन एवम् रेशम से बना है अन्यथा सोचना पड़ता कि किससे बनाया गया है?
रचना और रचनाकारी दोनों ही सुन्दर हैं!
Hello ji,
Dekho kitne saare comments aa gaye... :)
Achhe comments ki baarish kabhi aapse naraaz nahi hoti... :)
Bahut achha likha hai hamesha ki tarah... sab kuch keh diya kuch hi lines mein... great work!
Regards,
Dimple
जितने अच्छे भिति चित्र बने हैं उतनी ही अच्छे शब्द बुने हैं सच मे तुम्हारी उँगलियों मे जादू है। बधाई ।ाउर ऐसी उँगलियों को चूम लेने का मन है। बेटियाँ हों तो तुम जैसी।
अजी यह जानना सबसे जरूरी है कि वसंत रूठा क्यों.... अब मनाना तो आपको ही होगा... हमेशा की तरह अच्छी रचना। आभार।
चटक रंगों से सजाया है इन चित्रों को अपने ...
बसंत तो रंग बिरंगे रंग ले कर अत है जीवन में ... कहीं मीठे कहीं उदासियों के .... अछा लिखा है .
जाने क्या बात हुई,क्या हुई ख़ता ,
मेरी छोड़ सब की फूलीं फुलवारियाँ!
मुझ से ही क्यों बसंत रूठा,
क्यों हुई मेरी रुसवाईयाँ?
तब से आहें भरना छोड़ दिया,
किस आह की सुनवाई यहाँ?
क्या कथ्य..........
क्या कथा.............
पिरो दी सारी व्यथा............
भित्त चित्र मनमोहक हैं और आपकी कविता भावपूर्ण !
कला और कविता के परिणय का एक और नायाब नमूना
कभी मुंबई गया तो निगाहें आपके बनाये भित्ती चित्रों को जरूर ढूंढेंगी।
शोर उठा था नगर में,
आया है बसंत पूरी बहर में,
हमने भी सजाई क्यारियाँ,
सुन परिंदों की किलकारियाँ!
...bahut badiya basanti prastuti... nagar mein jyada shor hai.. phir bhi basant aa hi jaata hai haule se..
नायाब पेंटिंग बनायीं है आपने....
रचना में पीड़ा प्रभावशाली ढंग से स्फुरित हुई है...
भित्त चित्र - लाजवाब
क्षमा जी, आपकी रचना में निराशा झलक रही है और आपके कलाकृतियों में रंगों का भरमार है, पर कोई उलझन का सा रंग है ... ऐसा लगता है मन में तूफ़ान है ...
रचना भावपूर्ण है ..लेकिन थोडा सा उदासी का माहौल बनाती है ..
हमें तो भरोसा है, वसंत कहीं गया नहीं है और गया है तो लौट आएगा.
shama ji , main bhaagyashaali hoon ,ki mujhe aapse milne ka mauka mila aur maine aapke chitr dekhe hai .. aapka hunar , duniya ke sabse acche hunar me se ek hai , khuda aapko swasth rakhe .. aapki kavita to bahut kuch kah gayi kam shabdo me hi ..
vijay
चित्र गज़ब का बनाया है आपने
कला और काब्य का अनूठा संगम...सदा जय हो आपकी...
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