क्षमा जी, आदाब ज़िंदगी का सामाँ बनाती रही, चुनर हवा में उडती रही, किसी ने आना था नही, हवा फिर भी गुनगुनाती रही.. दूर से इक आहट आती रही.. चंद पंक्तियों में समेट दिया ...ये आहटों का फ़रेब
vandana ji sahi kahi ,bahut komal bhav rahte hai aapke ज़िंदगी का सामाँ बनाती रही, चुनर हवा में उडती रही, किसीने आना था नही, हवा फिर भी गुनगुनाती रही.. दूर से इक आहट आती रही..
16 टिप्पणियां:
sunder bhav.acchee rachana.....Badhai.......
बहुत सुन्दर!
दूर से एक आहत आती रही.....
वाह बहुत खूबसूरत...
क्षमा जी, आदाब
ज़िंदगी का सामाँ बनाती रही,
चुनर हवा में उडती रही,
किसी ने आना था नही,
हवा फिर भी गुनगुनाती रही..
दूर से इक आहट आती रही..
चंद पंक्तियों में समेट दिया
...ये आहटों का फ़रेब
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
Bahut khub...
dur se ek ahat aati...kam shabdo me bat badi.
BAHUT AACHA,
MY BLOG RAMRAYBLOGSPOST.BLOGSPOST.COM
BAHUT AACHA,
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बहुत जोरदार rachnaa..
namaskar visit my new post.......
क्या कहूं दी, कभी-कभी इतना मासूम सा लिख देतीं है आप!!!
बेहतरीन!!!
आपकी आभिव्यक्ति सुन्दर बन पडी है. शुभकामनाएं..
.... बेहद खूबसूरत रचना!!!
vandana ji sahi kahi ,bahut komal bhav rahte hai aapke
ज़िंदगी का सामाँ बनाती रही,
चुनर हवा में उडती रही,
किसीने आना था नही,
हवा फिर भी गुनगुनाती रही..
दूर से इक आहट आती रही..
khubsurat panktiyan..
mere blog tak aane ka bahut bhaut shukriya.
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