सुना ,दीवारों के होते हैं कान ,
काश होती आँखें और लब!
मै इनसे गुफ्तगू करती,
खामोशियाँ गूंजती हैं इतनी,
किससे बोलूँ? कोई है ही नही..
आयेंगे हम लौट के,कहनेवाले,
बरसों गुज़र गए , लौटे नही ,
जिनके लिए उम्रभर मसरूफ़ रही,
वो हैं मशगूल जीवन में अपनेही,
यहाँ से उठे डेरे,फिर बसे नही...
सजी बगिया को ,रहता है फिरभी,
इंतज़ार क़दमों की आहटों का,
पर कोई राह इधर मुडती नही ,
पंखे की खटखट,टिकटिक घड़ी की,
अब बरदाश्त मुझसे होती नही...
16 टिप्पणियां:
kya khub soch hai...
deewarein bolti nahi...
waah.....
bahut hi achhi rachna ban padi hai.....
कविता में आज कुछ नैराश्य दिखाई दे रहा है..
कढाई बेहद उम्दा है.....और उस पर कही हुई कविता चार चाँद लगा रही है...सुन्दर
वाह ! सुन्दर कलाकृति के साथ एक सुन्दर कविता भी ... इंतज़ार और व्याकुलता के सही चित्रण ...
आदर्णीय महोदया सबसे पहले प्रोत्साहित करने के लिये आपका आभार.
पेंटिंग के साथ एक सुन्दर कविता की प्रस्तुति वाकई काबिले तारीफ़ है.
धन्यवाद.
इसी को कहते हैं न सन्नाटे का छंद !
...बेहतरीन !!!
लाजवाब रचना ......कढ़ाई तो कमाल कि .
umda!
तस्वीरें निशब्द होकर भी बहुत कुछ कहती हैं
बहुत सुन्दर
Very powerful portrayal of feeling! Loneliness, desire and pain, all rolled into a beautiful poem.
And the art is superb too, a masterpiece on its own.
रचना में विषय को बहुत ही चतुराई से पिरोया है आपने!
sach kaas diwaaron k kaan k sath sath lab v hote to hum v unse dher saari baatein karte..
ji bahut badhiya prastuti..
kunwar ji,
सजी बगिया को ,रहता है फिरभी,
इंतज़ार क़दमों की आहटों का,
पर कोई राह इधर मुडती नही ...
Aap bahut achha likhti hain Kshama ji... Itne saare achhe thoughts kahaan se laati hain!! Mujhe bhi wahaan ka pataa bataa do main bhi kuch thoughts chunn ke le aaungi :)
Regards,
Dimple
deeware bolti nahi...kaffi accha topic hai...or kavita bhi khoob likhi hai aap neeeeeeee
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