नुक्कड़,नुक्कड़ गधे खड़े हैं,
आगे पूजा के फूल हैं,
गलों में उनके हार हैं,
नन्हीं कलियाँ मरती हैं,
इनकी उम्र दराज़ है,
बुतों से बने बगीचे हैं,
फूल औ,परिंदे कहाँ हैं?
हरसूँ झुलसाती धूप है,
छाया का निशाँ नही है,
हाले चमन क्या होगा?
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14 टिप्पणियां:
bahut sundar aur gahri baat kahi hai.
"बुतों से बने बगीचे हैं,
फूल औ,परिंदे कहाँ हैं?
हरसूँ झुलसाती धूप है,
छाया का निशाँ नही है"
:)
kunwar ji,
barbaad gulistan karne ko bas ek hi ullu kaafi har saakh par ullu baitha hai anjaame gulistan kya hoga
bahut badhiya. ek sher hai----------har shakh pe ullu baitha hai anjaame gulista kya hoga,jab ek hi ullu kafi hai barbaade gulista karane ko.
अति सुन्दर रचना ।
घबराने की बात नहीं क्षमा जी, उन बुतों के महिमामंडन और मस्तकाभिषेक के लिए परिंदे हैं न..
बहुत सुन्दर
फूल औ,परिंदे कहाँ हैं?
हरसूँ झुलसाती धूप है,
छाया का निशाँ नही है,
हाले चमन क्या होगा?
ये पंक्ति बहुत अच्छी हैं.
बुतों से बने बगीचे हैं,
फूल औ,परिंदे कहाँ हैं?
mayawati jaise do char aur jut jayen to yahee hona hai.
very true and very deep thoughts .........
बहुत बढ़िया रचना...
...बेहतरीन !!!
आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं
हर शाख पर उल्लू बैठे हैं अंजामे गुलिस्तां क्या होगा !
इशारे से आपने बड़ी बात कही है !
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