जिस रात की,चाहते थे, सेहर ही ना हो,
पलक भी ना झपकी ,बसर हो गयी!
उस की पैरहन पे सितारे जड़े थे,
नज़र कैसे उतारते ,सुबह हो गयी!
झूम के खिली थी रात की रानी,
साँस भी ना ली ,खुशबू फना हो गयी...
जुगनू ही जुगनू,क्या नज़ारे थे,तभी,
निकल आया सूरज,यामिनी छल गयी!

.रेशमके
कपडेपे water कलर, उसके ऊपर धुंद दिखानेके लिए शिफोनका एक layer ....कुछ
अन्य रंगों के तुकडे, ज़मीन, पहाड़, घान्सफूस, दिखलाते है...इन कपडों पे
कढाई की गयी है...
खादी सिल्क से दीवारें तथा रास्ता बनाया है..क्रोशिये की बेलें हैं..और हाथसे काढ़े हैं कुछ फूल-पौधे..बगीचे मे रखा statue plaster ऑफ़ Paris से बनाया हुआ है..

